The right to life is above the right to kill and the right to eat cow-beef can never be considered a fundamental right Allahabad High Court

 जिसे मां के रूप में पूजा जाता है उसके बूढ़ी होने या बीमार हो जाने पर उसकी हत्या किए जाने का हक किसी को भी नहीं दिया जा सकता, माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने गौवध अधिनियम से संबंधित एक जमानत याचिका खारिज करते हुए यह टिप्पणी की। गाय बूढ़ी और बीमार हो जाने के बावजूद भी उपयोगी होती है क्योंकि उसके गोबर व मूत्र कृषि के लिए बहुत ही उपयोगी होते हैं जिससे खाद्य के साथ-साथ औषधि का भी निर्माण होता है।


उक्त दाण्डिक प्रकीर्ण जमानत आवेदन पत्र, आवेदक जावेद की ओर से मुकदमा अपराध संख्या 59/2021, अंतर्गत धारा 379 आईपीसी एवं अंतर्गत धारा 3/5/8 गौवध निवारण अधिनियम, थाना नखासा, जिला संभल, माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष अपने विद्वान अधिवक्ता मोहम्मद इमरान खांन के द्वारा प्रस्तुत किया गया था। राज्य की ओर से विद्वान शासकीय अधिवक्ता श्री शिव कुमार पाल व विद्वान अपर शासकीय अधिवक्ता श्री मिथिलेश कुमार के द्वारा उक्त जमानत प्रार्थना पत्र का घोर विरोध किया गया।


अभियोजन पक्ष के कथन संक्षेप में निम्न प्रकार हैं:-
वादी मुकदमा खिलेंद्र सिंह द्वारा एक प्रथम सूचना रिपोर्ट थाना हाजा पर इस आशय की पंजीकृत कराई गई कि दिनांक 09/02/ 2021 की रात्रि में वह अपने घर के अंदर परिवार के साथ सो रहा था कि रात्रि में किन्हीं अज्ञात चोरों द्वारा उसकी गाय उम्र करीब 5 वर्ष रंग काला और सफेद, जिसके सींग 6-6 अंगुल लंबे थे, चोरी करके ले गए। सुबह उठने पर गाय के चोरी होने की जानकारी हुई। उक्त गाय कटी हुई हालत में दो अन्य कटी हुई गायों के साथ जंगल में पाई गई जहां अभियुक्तगण छोटे, जावेद, शुएब तथा अन्य अभियुक्तगण अरकान व रेहान तथा दो-तीन अन्य व्यक्ति गायों को काटकर मांस इकट्ठा करते हुए टीकम सिंह आदि लोगों के द्वारा देखे गए तथा उन्हें पहचाना गया। वादी मुकदमा खिलेंद्र सिंह भी मौके पर पहुंचे तथा उसके द्वारा अपनी गाय की उसके कटे हुए सिर से पहचान की गई।


जमानत प्रार्थना पत्र पर बहस करते समय आवेदक के विद्वान अधिवक्ता ने निम्न तर्क प्रस्तुत किए:-
आवेदक निर्दोष है उसे उक्त प्रकरण में झूठा फंसाया गया है। यह भी तर्क रखा गया कि आवेदक द्वारा कोई भी घटना कारित नहीं की गई है आवेदक पर लगाए गए सभी आरोप झूठे हैं। उससे गाय का कटा, मरा या जिंदा मांस बरामद नहीं हुआ है। आवेदक घटनास्थल पर नहीं था और न ही वहां से भागा था। आवेदक के विरुद्ध पुलिस से मिलकर झूठा मुकदमा दर्ज कराया गया है तथा आवेदक 8 मार्च 2021 से जेल में निरूद्ध है। ऐसी दशा में आवेदक को जमानत पर मुक्त किया जाना न्यायहित में परम आवश्यक है।


[  ] राज्य की ओर से विद्वान शासकीय एवं विद्वान अपर शासकीय अधिवक्ता द्वारा जमानत प्रार्थना पत्र के विरोध में प्रस्तुत तर्क:-
शासकीय विद्वान अधिवक्ता एवं अपर शासकीय अधिवक्ता द्वारा उक्त जमानत प्रार्थना पत्र का घोर विरोध किया गया तथा यह भी तर्क प्रस्तुत किया गया कि आवेदक के विरुद्ध लगाए गए आरोप बिल्कुल सही है। साक्ष्यीयों के साक्ष्य से यह साबित होता है कि अभियुक्त को टॉर्च की रोशनी में देखा एवं पहचाना गया है और वह अपने पांच नामजद एवं दो-तीन अज्ञात चोरों द्वारा वादी की गाय चोरी कर ले गए और सुबह 4:00 बजे वादी जब गायों को चारा डालने गया तो पता चला कि गाय रात्रि में चोरी हो गई है। शोर-शराबा करने पर गांव के मुनव्वर के खेत में जलती रोशनी देखी तो वहां अभियुक्त जावेद सह-अभियुक्त शुऐब, रेहान, अरकान, व 2-3 अज्ञात लोग जो गाय को काट कर मांस इकट्ठा कर रहे थे, को टॉर्च की रोशनी में पहचाना गया। मौके पर ये लोग अपनी मोटरसाइकिल सी0 डी0 डीलक्स रजिस्ट्रेशन नंबर यूपी 21 एबी 5014 को छोड़कर भाग गए। गाय के कटे हुए सिर और मांस को देखकर गांव में रोष व्याप्त है। पशु चिकित्सक द्वारा भी कटे हुए मांस को गाय का मांस होना बताया गया है। विद्वान अपर शासकीय अधिवक्ता द्वारा जोर देकर कहा गया कि गौवध पूर्ण रूप से प्रतिबंधित है तथा गायों को काटा जाना अपराध है। आवेदक को गाय काटते हुए देखा एवं पहचाना गया है। ऐसी दशा में आवेदक जमानत पर मुक्त होने योग्य नहीं है।


माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में निम्नलिखित महत्वपूर्ण टिप्पणियां की:-
उल्लेखनीय है कि गाय का भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण स्थान है तथा गाय को भारत देश में मां के रूप में जाना जाता है और उसकी देववत्त के रूप में पूजा होती है। यहां पर पेड़-पौधे, जल, पहाड़, वायु, पृथ्वी का पूजन किया जाता है क्योंकि उनका वैज्ञानिक आधार है कि वे मनुष्य के जीवन में बड़े लाभकारी हैं तथा उन्हें जीवन देते हैं और भारत के लोगों की यह बहुत बड़ी पहचान है कि वे उदार होते हैं और अपनी उदारता के कारण वे जिस जीव में मनुष्य का कल्याण देखते हैं उसे अपना भगवान मान लेते हैं। ऐसा ही कल्याण वे गाय में देखते हैं जो बलिष्ठ स्वास्थ्य होने के लिए दूध देती है, खाद्य हेतु गोबर देती है, विषाणुनाषक मूत्र देती है। वंश को बढ़ाने हेतु बछड़ा और बैल उत्पन्न करती है जो बड़ा होने पर खेती और जुताई के काम करता है।
भारतीय वेद, शास्त्र, पुराण, रामायण और महाभारत जो कि भारतीय संस्कृति की पहचान है और उन्हीं से भारत देश जाना जाता है उनमें गाय की बड़ी महत्वता दर्शाई गई है। इसी कारण गाय हमारी संस्कृति का आधार है। वैदिक ज्योतिषशास्त्र में गाय को वैतरणी पार करने के लिए गाय दान की प्रथा का उल्लेख के साथ ही साथ श्राध्द कर्म में गाय के दूध की खीर का प्रयोग किया जाता है क्योंकि इससे पितरों को तृप्ति मिलती है। सूर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, वृहस्पात, शुक्र, शानि, राहु, केतु के साथ-साथ वरूण, वायु, आदि देवताओं को यज्ञ में दी गयी प्रत्येक आहूति गाय के घी से देने की परम्परा है जिससे सूर्य की किरणों को विशेष ऊर्जा मिलती है और यही विशेष ऊर्जा वर्षा का कारण बनती है और वर्षा से ही अन्न, पेड-पौधे आदि को जीवन मिलता है। हिन्दू विवाह जैसे मंगल कार्यो में गाय का बडा महत्व है। स्वामी दयानन्द सरस्वती जी ने कहा है कि एक गाय अपने जीवनकाल में 410 से 440 मुनष्यों हेतु एक समय का भोजन जुटाती है और उसके मांस से केवल 80 लोग ही अपना पेट भर पाते है। पंजाब केसरी महाराजा रणजीत सिंह ने अपने शासनकाल में गौहत्या पर मृत्युदण्ड का कानून बनाया था। वैज्ञानिक यह मानते है कि गाय ही एकमात्र ऐसा पशु है जो कि आक्सीजन ग्रहण करती है, आक्सीजन ही छोडती है। पंचगव्य जो कि गाय के दूध, दही, घी, मूत्र, गोबर द्वारा तैयार किया जाता है कई प्रकार के असाध्य रोगों में लाभकारी है। हिन्दु धर्म के अनुसार गाय में 33 कोटि देवी देवता निवास करते हैं । वेदों में भी गाय का उल्लेख है जो कि हजारो साल पुराने हैं। श्रृगवेद में गाय को अघन्या, यर्जुवेद में गौर अनुपमेय, अथर्वेद में गाय को सम्पत्तियों का घर कहा गया है। भगवान श्रीकृष्ण को सारा ज्ञान गौचरणों से ही प्राप्त हुआ है। भगवान राम के पूर्वज राजा दिलीप नन्दनी गाय की पूजा करते थे। भगवान शंकर का वाहन नन्दी, गौ वंशज ही है। तीर्थकर भगवान रामदेव का चिन्ह बैल है। 9,500 वर्ष पूर्व गुरू वशिष्ठ ने गाय के कुल का विस्तार किया था। स्कन्द पुराण के अनुसार गौ सर्वदेवमयी और वेद में गाय सर्वगौमय है। श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भगवदगीता में कहा है ” धेनुनामस्मि कामधेन ” अर्थात गायों में मै कामधेनू हूं। ईसा मसीह ने कहा कि एक गाय या बैल को मारना मनुष्य के मारने के समान है। गुरू गोविन्द सिंह ने कहा “ यही देहु आज्ञा तुरूक को खपांउ , गौमाता का दुख सदा मै मिटाऊं। “ बाल गंगाधर तिलक ने कहा था कि चाहे मुझे मार डालों पर गाय पर हाथ न उठाओ। कवि रसखान ने कहा कि यदि मेरा दुबारा जन्म हो तो मैं बाबा नन्द के गायों के बीच में जन्म लूं । पं 0 मदन मोहन मालवीय ने सम्पूर्ण गोवध हत्या निषेध की वकालत की थी। महार्षि अरविन्द ने भी गाय वध को पाप माना। भगवान बुद्ध गायों को मनुष्य का मित्र बताते है। जैनों ने गाय को स्वर्ग कहा है। गांधी जी ने गोवंश की रक्षा को भगवान से जोडकर कहा। उपरोक्त बातों को ध्यान में रखकर ही गाय को हमारे देश में बहुत महत्व दिया गया है और उसके संरक्षण और सर्वधन की बात कही गयी है। गाय के महत्व को केवल हिन्दुओं ने समझा हो ऐसा नहीं है। मुसलमानों ने भी गाय को भारत की संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा मानते हुए अपने शासनकाल में मुसलमान शासकों द्वारा गायों के वध पर रोक लगाई थी। बाबर, हुमायूं और अकबर ने भी अपने धार्मिक त्याहारों में गायों की बलि पर रोक लगायी थी। मैसूर के नवाब हैदर अली ने गोहत्या को एक दण्डनीय अपराध बना दिया था। सन् 1953 में उत्तर प्रदेश राज्य द्वारा गठित गोसंवर्धन समिति के तीन सदस्य मुस्लिम थे और गाय के वध को पूर्ण प्रतिबंध के समर्थित थे। स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी मंगल पाण्डेय को जब यह पता चला कि मुँह से पिन खींचने वाले गोले में गाय की चर्बी है तो उन्होंने इसका विरोध किया और सम्पूर्ण अंग्रेजी सेना में हिन्दू सैनिकों ने विद्रोह कर दिया। परिणामतः मंगल पाण्डेय को फांसी हुई। इतिहास भरा पड़ा है कि जब-जब भारतीय संस्कृति व गाय पर अत्याचार हुआ इस देश का हर नागरिक उसके विरोध में खडा हुआ। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 48 में कहा गया है कि गाय नस्ल को संरक्षित करेगा और दुधारू एवं अन्य भूखे जानवरों सहित गौहत्या पर रोक लगायेगा। संविधान के भाग 4 में राज्य के नीति निर्देशक तत्वों से सम्बन्धित अनुच्छेद 48 के लागू करने के बारे में गौवध हत्या के वध की बात पर ध्यान आकृषित करता है। भारत के 29 राज्यों मे से 24 राज्यों में गाय मांस की बिक्री व गोवध पर प्रतिबंध है। भारतीय संविधान के निर्माण के समय संविधान सभा के कई सदस्यों ने गौरक्षा को मौलिक अधिकारों के रूप में शामिल करने की बात कही थी। गाय पालन आर्थिक और नैतिक दोनों रूप से बेहद लाभकारी है। अनुच्छेद 51 ए ( जी ) में यह राज्य की प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और सुधार करने और जीवित प्राणियों के लिए करूणा रखने में सक्षम बनाता है। गाय हिन्दुओं की आस्था है और हिन्दू संस्कृति है। सदियों से हिन्दू गाय की पूजा करते चले आ रहे है। यह बात गैर हिन्दू भी समझते है और यही कारण है कि गैर हिन्दू नेताओं ने मुगलकाल में हिन्दू भावनाओं की कद्र करते हुए गौवध का पुरजोर से विरोध किया जिनमें मौलाना मोहम्मद अली, शौकत अली, हकीम अजमल खांन, मियां हाजी, अहमद खत्री, मियां छोटानी, मौलाना अब्दुल बारी, मौलाना अब्दुल हुसैन और अहमद मदनी जैसे राष्टवादी मुसलमानों ने गौहत्या न करने की अपील की। सन् 1919 में खिलाफत अन्दोलन का नेतृत्व महात्मा गांधी जी ने किया था जिसमें उक्त सभी मुसलिम नेता शामिल थे। एक अन्य अन्दोलन ख्वाजा हसन निजामी द्वारा किया गया जिन्होंने एक किताब लिखी थी। ” तार्क – ए गाओ कुशी, जिसमें गोहत्या न करने की बात लिखी है, जिसमें सम्राट अकबर, हुमायूं और बाबर द्वारा अपनी सल्तनत में गौहत्या न करने की अपील की थी क्योंकि इससे हिन्दुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचती है। जमीयत-उलेमा-ए-हिन्द के मौलाना महमूद मदनी ने भारत में गौहत्या पर प्रतिबंध लगाने के लिए केन्द्रीय कानून की मांग की है। कहने का तात्पर्य है कि देश का बहुसंख्यक मुस्लिम नेतृत्व हमेशा गौहत्या पर देशव्यापी प्रतिबंध लगाने के पक्ष में रहा है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 48 में गौहत्या पर रोक को संघ सूची में रखने के बजाए राज्य सूची में रख दिया है और यही कारण है कि भारत के कई राज्य ऐसे है जहां गौवध पर रोक नहीं है।
समस्त परिस्थितियों को ध्यान में रखने की आवश्यकता है कि गाय को एक राष्ट्रीय पशु घोषित किया जाए और गौ सुरक्षा को हिंदुओं के मौलिक अधिकार में शामिल किया जाए क्योंकि हम जानते हैं कि जब देश की संस्कृति और उसकी आस्था पर चोट होती है तो देश कमजोर होता है। चाणक्य ने अर्थशास्त्र में लिखा है कि किसी भी देश को नष्ट करना है तो सबसे पहले उसकी संस्कृति नष्ट कर दो, देश स्वतः ही नष्ट हो जायेगा। उक्त बातों को ध्यान में रखकर ही बहुतायत राज्यों मे गौहत्या पर प्रतिबंध है उसमें उत्तर प्रदेश एक है और वर्तमान वाद भी उत्तर प्रदेश की परिधि में है जहां गौवध विधि विरूद्व है। वर्तमान वाद में गाय की चोरी करके उसका वध किया गया है जिसका सिर अलग पड़ा हुआ था और मांस भी रखा हुआ था। मौलिक अधिकार केवल गौमांस खाने वालों का विशेषाधिकार नहीं है जो लोग गाय की पूजा और आर्थिक रूप से गायों पर जीवित है उन्हें भी सार्थक जीवन जीने का अधिकार है। कुछ लोगों को जीभ का स्वाद लेने के लिए किसी के जीवन के अधिकार को छीनने की अनुमति नही दी जा सकती और जीवन का अधिकार हत्या के अधिकार से ऊपर है और गोमांस खाने का अधिकार कभी भी मौलिक अधिकार नहीं हो सकता। देश के न्यायालय को नागरिकों की गारण्टीकृत मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए एक प्रहरी के रूप में कार्य करते हुए मौलिक अधिकारों और समाज के बडे और व्यापक हितों के बीच एक उचित सन्तुलन बनाने की कोशिश करनी चाहिए एवं राज्य के नीति निर्देशक सिद्वान्तों को अप्रर्वतनीय और मौलिक अधिकारों के अधीन रखना चाहिए। संविधान के अनुच्छेद 19 ( 1 ) ( जी ) द्वारा गारण्टीकृत मौलिक अधिकार पर प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता है। भारतीय संविधान 48 को ध्यान में रखकर जो पूर्ववर्तीय निर्णय दिए गये उनमें अनुच्छेद 48 ए और 51 ए पर ध्यान नहीं दिया गया क्योंकि वे उस समय उपलब्ध नहीं थे और उन्हें 3 जनवरी 1977 के 42 वें संशोधन द्वारा संविधान में जोड़ा गया। पूर्ववतीय निर्णयों में यह कहा गया यदि गाय और उसका वंशज 15 वर्ष से अधिक आयु या बीमार हो जाता है तो उसको वध किया जा सकता है किन्तु यह ठीक नहीं है क्योंकि गाय बूढी एवं बीमार होने पर भी उपयोगी होती है और गोबर व मूत्र कृषि योग्य बहुत उपयोगी होता है जिससे खाद्य के साथ औषधि का भी निर्माण होता है और सबसे बड़ी बात जिसे मां के रूप में पूजा जाता है उसके बूढी होने या बीमार होने से उसकी हत्या का हक किसी को नहीं दिया जा सकता है। बाम्बें पशु संरक्षण अधिनियम 1954 के प्राविधानों के अन्तर्गत गाय का वध पूर्ण निषेध है। अनुच्छेद 48 के अनुसार गायों और बछडों और अन्य दुधारू जानवरों के वध पर रोक लगाने के लिए 18 वर्ष से कम आयु की गाय के वध के खिलाफ पूर्ण प्रतिबंध लगाना आवश्यक माना गया है। इसके पीछे वैज्ञानिक कारण यह है कि गाय बूढी होने के बाद भी बायो गैस के लिए गोबर देना जारी रखती है और मरते दम तक गाय को बेकार नहीं कहा जा सकता। इस तरह गाय भारतीय कृषि की रीढ़ है और देश की 75 प्रतिशत जनता जो गांवों में रहती है, के लिए एक अच्छा आर्थिक स्रोत है। पश्चिम बंगाल राज्य एवं अन्य प्रति आशुतोष लहरी 1955 एस 0 सी 0 सी 0 189 में मुसलमानों के लिए बकरीद पर गाय वध शामिल नहीं है। मौलिक अधिकारों और नीति निर्देशक तत्वों के बारे में श्रीमती चंपकम दौरे राजन 1951 ए 0 सी 0 सी 0 आर 0 525 में माना गया कि राज्य को नीति निर्देशक सिद्धान्तों को मौलिक अधिकारों के अध्याय के अनरूप और सहायक के रूप में चलाना होगा और यह माना कि नीति-निर्देशक सिद्धांत मौलिक हैं और लागू करना राज्य का कर्तव्य है। भारतीय पशु कल्याण बोर्ड बनाम ए . नागराज और अन्य के मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने जल्लीकटू जो तामिलनाडू का पारस्परिक खेल है जिसमें बैलों के साथ अत्याचार किया जाता है, पर प्रतिबंध लगाया गया और माना कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 ( जी ) पशु अधिकारों का मैग्ना कार्टा है, और अनुच्छेद 21 के तहत जानवरों के जीवन की रक्षा की बात कही और कहा प्रत्येक प्रजाति को जीवन और सुरक्षा का अधिकार है जो कानूनों के अधीन है जिसमें उनके जीवन के मानवीय आवश्यकता से वंचित करना शामिल है। ” जीवन ” शब्द को विस्तारिक परिभाषा दी गयी जिसमें पशु जीवन सहित जीवन सभी रूप शामिल है जो मानव के लिए आवश्यक है। जीवन, भारतीय संविधान के अन्तर्गत आता है। हलांकि यह राज्य का कतर्व्य है ( राज्य नीति निर्देशक तत्व ) कि वह पशु कल्याण के लिए कानून बनाये। भारत संविधान अनुच्छेद 48– में राज्य के लिए कहा गया है कि कृषि और पशुपालन को आधुनिक और वैज्ञानिक आधार पर संगठित करेगा और विशेष रूप से गाय और बछडों और अन्य दुधारू और भारोतोलक मवेशियों की नश्लों का संरक्षण, सुधार और वध पर रोक लगाने के लिए कदम उठायेगा।

Law of Crimes – Multiple Choice Questions


अब्दुल कुरैशी बनाम बिहार राज्य ( 1961 ) के मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने बिहार में गौहत्या पर प्रतिबंध से संबंधित कानूनों की संवैधानिककता के सम्बंध में कहा कि हिदायत या कुरान जैसी किसी भी इस्लामिक ग्रंथों में से किसी ने भी गौहत्या को अनिवार्य नहीं माना और इसके बजाए ऊंट, बकरी की बलि देने की अनुमति दी है। यही भारतीय संविधान के अनुच्छेद 48 की भी व्याख्या है। उत्तर प्रदेश गौवध निवारण अधिनियम 1955 की धारा 5 क में उपलब्ध उपधारा 5 के पश्चात निम्नलिखित उपधारा जोडी गयी है जो इस प्रकार है:-
[  ] ( 5 ख ) जो कोई किसी गाय या उसके गौवंश को ऐसी शारीरिक क्षति कारित करता है जो उसके जीवन को संकटपन्न करे या गौवंश का अंग भंग करना, जीवन के संकटपन्न करने वाली किसी परिस्थिति में उसका परिवहन करना, उसके जीवन को संकटपन्न करने के आशय से भोजन पानी आदि का लोप करना, वह ऐसी अवधि के कठोर कारावास जो न्यूनतम एक वर्ष होगी और जो सात वर्ष तक हो सकती है, से और ऐसे जुर्माना हो न्यूनतम एक लाख रूपये होगा, जो तीन लाख रूपये तक हो सकता है, से दण्डित किया जायेगा।
[  ] धारा 8 ( 1 ) में कहा गया है कि धारा 3, 5 या धारा 5 क के उपबंधो के उल्लघंन करने पर न्यूनतम 3 वर्ष से अधिकतम 10 वर्ष की कठोर कारावास एवं पांच लाख रूपये के जुर्माना का प्राविधान है।
गाय के महत्व को ध्यान में रखते हुए गौहत्या करने वाले व्यक्ति के लिए इस अधिनियम में उसकी जमानत के लिए कठोर नियम की बात कही गयी है। अधिनियम की धारा 7 क में कहा गया है कि दं 0 प्र 0 सं 0 1973 के अन्तरवृष्टि किसी बात के होते हुए भी इस अधिनियम या तद्वधीन बनायी गयी नियमावली के अधीन किसी दाण्डिक अपराध से आरोपित किसी व्यक्ति को अभिरक्षा में रहने के दौरान जमानत पर या स्वयं के बंधपत्र पर तब तक निमुर्क्ति नही किया जायेगा जब तक कि:-
[  ]  ( क ) विशेष लोक अभियोजक को ऐसी निमुर्क्ति के आवेदन का विरोध करने का अवसर प्रदान नहीं कर दिया जाता;


[  ]  ( ख ) जहाँ विशेष लोक अभियोजक, आवेदन का विरोध करता है, न्यायालय को यह विश्वास हो जाए कि वह विश्वास करने का युक्तिसंगत आधार है कि वह ऐसे अपराध का दोषी नहीं है और यह कि जमानत के दौरान उसके द्वारा ऐसा कोई अपराध करना असम्भव है।

[  ]  अधिनियम की धारा 8 ( 3 ) की कठोरता आरोपी व्यक्ति के लिए यहां तक कहती है कि 8(3) धारा 5 क उपबंध के उल्लंघन करने वाले अभियुक्त व्यक्ति का नाम तथा फोटोग्राफ मोहल्ले में ऐसे किसी महत्वपूर्ण स्थान पर जहां अभियुक्त सामान्यतः निवास करता हो अथवा ऐसे किसी सार्वजनिक स्थल पर जहां वह विधि प्रवर्तन अधिकारियों से स्वयं को छुपाता हो प्रकाशित किया जाएगा।

दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 के अन्तर्गत धारा 5 ख एवं धारा 8 की उपधारा ( 1 ) के अधीन दण्डनीय अपराध संज्ञेय तथा अजमानतीय माना गया है। भारतीय संविधान भी इसके संरक्षण की बात करता है। समय-समय देश के विभिन्न न्यायालयों एवं सर्वोच्च न्यायालय ने भी गाय के महत्व को समझते हुए इसके संरक्षण, सवर्धन एवं देश के लोगों की आस्था को ध्यान में रखते हुए तमाम निर्णय दिए हैं और संसद एवं विधान सभा ने भी समय के साथ नये नियम गायों की रक्षा हित में बनाये हैं जिसमें उत्तर प्रदेश उसमें अग्रणी है। किन्तु कभी-कभी यह देखकर बहुत कष्ट होता है कि गाय संरक्षण और सर्वधन की बात करने वाले ही गाय के भक्षक बन जाते है। सरकार भी गोशाला का निर्माण तो कराती है किन्तु उसमें गाय की देखभाल करने वाले लोग ही गाय का ध्यान नहीं रखते है। इसी प्रकार प्राईवेट गौशाला भी आज केवल एक दिखावा बनकर रह गयी है जिसमें लोग गाय संर्वधन के नाम से जनता से चंदा और सरकार से सहायता तो लेते है किन्तु उसको गाय के संर्वधन और उसकी देखभाल में न लगाकर स्वार्थहित में खर्च करते हैं। ऐसे तमाम उदाहरण देखने को मिलते हैं, जहां गाय, गौशाला में भूख और बीमारी के कारण मर जाती है या तो मरणासन स्थिति में है। गंदगी के बीच उनको रखा जाता है। खाने के अभाव में गाय पालीथीन खाती है नतीजतन बीमार होकर मर जाती है। सडक, गलियों में गाय जिन्होंने दूध देना बंद कर दिया उनकी बुरी हालत देखने को मिलती है। बीमार और अंगभंग गाय अक्सर लावारिस देखने में नजर आती है। ऐसी स्थिति में यह बात सामने आती है कि गाय के संरक्षण संर्वधन करने वाले लोग क्या कर रहे हैं। कभी-कभार एक दो गायो के साथ फोटो खिंचाकर वे समझते है कि उनका काम पूरा हो गया है लेकिन ऐसा नहीं है। सच्चे मन से गाय की सुरक्षा और उसकी देखभाल करनी होगी तथा सरकार को भी इस पर गंभीरतापूर्वक विचार करना होगा। देश और देश की संस्कृति तभी सुरक्षित रहेगी।


Delhi High Court Dismissed The Anticipatory Bail Plea Of The Woman Who Allegedly Threatened Man Of Filing False Rape Case


जब गाय का कल्याण होगा तभी इस देश का कल्याण होगा। विशेषकर उन लोगों से गाय के संरक्षण संवर्धन की आशा छोड़नी होगी जो दिखावा मात्र से गाय की सुरक्षा की बात करते हैं। साथ ही सरकार को भी संसद में बिल लाकर गाय को मौलिक अधिकारो में शामिल करते हुए गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करना होगा और उन लोगों के विरूद्व कडे कानून बनाने होगें जो गाय को नुकसान पहुंचाने की बात करते है साथ उनको भी शामिल करके दण्डित करने का कानून आना चाहिए जो छद्रम वेशी होकर गाय सुरक्षा की बात गौशाला आदि बनाकर करते तो है किन्तु उनका गाय सुरक्षा से कोई सारोकार नही होता है, उनका तो एक मात्र उद्देश्य है कि किसी प्रकार गाय सुरक्षा के नाम पर पैसा कमाया जाए। गाय संरक्षण एवं संर्वधन का कार्य केवल एक मत धर्म सम्प्रदाय का नही है बल्कि गाय भारत देश की संस्कृति है एवं संस्कृति को बचाने का काम देश में रहने वाले हर नागरिक का चाहे वह किसी भी धर्म या उपासना करने वाला हो, ऐसा न होने पर, सैकड़ों उदाहरण हमारे देश में है कि हम जब-जब अपनी संस्कृति भूले तब-तब विदेशियों ने हम पर आक्रमण कर गुलाम बनाया और आज भी हम न चेते तो आफगानिस्तान पर निरंकुश तालिबान का आक्रमण और कब्जे को भी हमे भूलना नहीं चाहिए। उपरोक्त सभी स्थिति एवं परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए यही निष्कर्ष निकलता है कि भारत ही एक मात्र सम्पूर्ण दुनिया में देश है जहां पर विभिन्न धर्म सम्प्रदाय के लोग रहते है जो पूजा भले ही अलग-अलग करते है परन्तु उनकी सोच देश के लिए एक समान है और एक दूसरे के धर्मों का आदर करते है। रीति-रिवाजों एवं खान पान का आदर करते हैं। ऐसी दशा में जब भारत को जोडने और उसकी आस्था को समर्थन करने के लिए हर एक आगे बढ चढकर हिस्सा लेते हैं तब कुछ लोग जिनका आस्था और विश्वास देशहित पर कतई नहीं है, वे ही लोग देश में इस प्रकार की बात करके देश को कमजोर करते हैं।
उपरोक्त सभी स्थिति एवं परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए यही निष्कर्ष निकलता है कि भारत ही एक मात्र सम्पूर्ण दुनिया में एक देश है जहां पर विभिन्न धर्म सम्प्रदाय के लोग रहते है जो पूजा भले ही अलग अलग करते है परन्तु उनकी सोच देश के लिए एक समान है और एक दूसरे धर्मों का आदर करते है । रीति रिवाजों एवं खान पान का आदर करते हैं । ऐसी दशा में जब भारत को जोडने और उसकी आस्था को समर्थन करने के लिए हर एक आगे बढ चढकर हिस्सा लेते हैं तब कुछ लोग जिनका आस्था और विश्वास देशहित पर कतई नहीं है , वे ही लोग देश में इस प्रकार की बात करके देश को कमजोर करते हैं । उपरोक्त परिस्थितियों को देखते हुए आवेदक/अभियुक्त के विरूद्व प्रथम द्वष्टया अपराध किया जाना बखूबी साबित होता है। आवेदक/अभियुक्त गौवध का अपराध कारित किया है। यह आवेदक का पहला अपराध नहीं है इसके पूर्व भी उसने गोवध किया है जिससे समाज का सौहार्द्ध बिगडा है और यदि उसे जमानत पर छोड़ दिया जाता है तो वह पुनः यही कार्य करेगा। जिससे समाज का वातावरण बिगडेगा और तनाव की स्थिति उत्पन्न होगी।

जमानत आदेश
उपरोक्त आवेदकगण का यह जमानत प्रार्थना पत्र बलहीन है एवं निरस्त होने योग्य है। तदनुसार उपरोक्त आवेदन पत्र निरस्त किया जाता हैं।

जस्टिस शेखर कुमार यादव
आदेश दिनांक :- 01/09/2021


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