जानिए चेक बाउंस केस की पूरी प्रक्रिया

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By :- मोहित भाटी एडवोकेट

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चेक के बाउंस  होने की स्थिति में पीड़ित पक्ष के पास माननीय न्यायालय के समक्ष परिवाद  योजित करने का अधिकार होता है जोकि Negotiable Instruments Act, 1881 (परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881) की धारा 138 के अन्तर्गत दिया गया है। परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 की धारा 138 के अनुसार चेक बाउंस होने की स्थिति में 2 वर्ष का कारावास या जितनी धनराशि का चेक है उससे दोगुनी धनराशि  माननीय न्यायालय पीड़ित पक्ष को देने का आदेश फरमा सकता है अथवा दोनो। चेक बाउंस के मामले में फर्स्ट क्लास मजिस्ट्रेट के न्यायालय में सुनवाई होती । वर्तमान समय में अधिकांश भुगतान चेक के माध्यम से किए जा रहे हैं। क्योंकि कानूनन 20,000 / रूपए से ज्यादा का नकद लेन-देन नही किया जा सकता। किसी भी व्यापारिक एवं पारिवारिक क्रम में लोगों द्वारा एक दूसरों को चेक दिए जा रहे हैं। चेक के अनादर हो जाने के कारण चेक बाउंस जैसे मुकदमों की भरमार न्यायालय में हो रही है। नए अधिवक्ताओं के लिए चेक बाउंस का मुकदमा संस्थित करना और कार्यवाही करना रोचक होता है और उनके लिए इस प्रकार  के मामलो मे सीखने के लिए बहुत कुछ होता है, जहां नए अधिवक्ता इस चेक बाउंस के प्रकरण को संस्थित करवाने में बहुत सारे विधि के प्रश्न और प्रक्रियाओं को समझते हैं। इस लेख के माध्यम से चेक बाउंस के केस को क्रमवार प्रक्रिया स्वरूप समझाया जा रहा है। यहाँ भी दी जा रही जानकारी आप सभी के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण  है,चाहे फिर आप आम आदमी हो,व्यापारी हो,फिर विधी के छात्र या फिर अधिवक्ता।

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चैक बाउंस का केस कहां और किस अधिनियम की किस धारा के अंतर्गत फाईल किया जाएगा ?
चैक बाउंस होने की स्थिति में पानेवाला व्यक्ति/चैक धारक Negotiable Instrument Act, 1881/परक्राम्य लिखत अधिनियम 1881 की धारा 138  के अंतर्गत ऐसे फस्ट क्लास मजिस्ट्रेट के न्यायालय में केस फाइल कर सकता है जहां चैक धारक खाता रखता  है, जहां चैक अनादरित/बाउंस हुआ है या फिर उस न्यायालय में भी केस फाइल किया जा सकता है जिसके क्षेत्राधिकार के भीतर चेक जारी किया गया  है।

धारा 138 के अधीन दंडनीय अपराध की जांच एवं विचारण केवल किसी ऐसे न्यायालय द्वारा किया जाएगा जिसके क्षेत्राधिकार के भीतर  चेक जारी किया गया है या जहां पर चैक बाउंस हुआ है।

चैक धारक व्यक्ति को चैक प्राप्ति के तीन माह के भीतर चैक को अपने खाते  में ( जिस बैंक की शाखा में उसका खाता है) भुगतान के लिए प्रस्तुत करना आवश्यक है।
और यदि किसी  कारणवश चेक बाउंस हो जाता है। जैसे बैंक से खाता बंद कर दिया जाना, अकाउंट में पैसा नहीं होना, या फिर चेक के भुगतान को रोक  दिया जाना/Stop Payment या फिर चैक पर चैक जारी कर्ता द्वारा फ़र्जी हस्ताक्षर करना आदि।
जब भी चेक अनादर होता है तो ऐसे अनादर पर चेक को प्राप्त करने वाले व्यक्ति के पास चेक बाउंस का प्रकरण दर्ज कराने का अधिकार होता है।

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चेक बाउंस होने के मुख्य कारण  :- (1) चेक देने वाले व्यक्ति के खाते में पर्याप्त धनराशि न होना। ( Insufficient funds )
(2) चेक देने वाले व्यक्ति द्वारा बैंक मैनेजर से कह कर चेक का भुगतान रूकवा देना। (Stop Payment)
(3) जिस खाते का चेक दिया गया है,उसका पहले से बन्द होना। ( Cheque of a close account )
(4) चेक का कटा-फटा होना या हस्ताक्षर miss match होना।
(5) तय समय सीमा के बाद चेक को भुगतान के लिए बैंक में प्रस्तुत करना।( Presentation of the cheque after expiry date i.e 3 month )

चेक बाउंस एक आपराधिक मामला :  चेक बाउंस का मामला एक आपराधिक मामला होता है, जिसकी कार्यवाही  फर्स्ट क्लास मजिस्ट्रेट या मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट के न्यायालय में की जाती है। लेनदेन के मामले सिविल प्रकृति के होते हैं, परंतु चेक बाउंस के मामले को आपराधिक प्रकृति का माना गया है।
Negotiable Instrument Act, 1881/परक्राम्य लिखत अधिनियम 1881 की धारा 138 द्वारा इसे एक दण्डनीय अपराध माना गया है जिसके अंतर्गत दो साल की सजा या बाउंस हुए चेक की धनराशि से दोगुनी धनराशि तक का जुर्माना अथवा दोनो से दण्डित किया जा सकता है।

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लीगल नोटिस :- चेक बाउंस के प्रकरण की शुरुआत लीगल नोटिस के माध्यम से की जाती है।  चेक बाउंस होने के  30 दिनों के भीतर चेक देने वाले व्यक्ति को एक लीगल नोटिस स्पीड पोस्ट या साधारण डाक द्वारा दिया जाना परम आवश्यक है। जिसकी प्रतिलिपि और असल डाक रसीद केस फाइल करते समय साक्ष्य के रूप में माननीय न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करनी परम आवश्यक है। यह जरूरी नही है कि लीगल नोटिस केवल अधिवक्ता के माध्यम से ही दिया जाए बल्कि लीगल नोटिस वादी स्वंय भी दे सकता है। परन्तु चेक बाउंस का केस मुख्यतः लीगल नोटिस पर ही निर्भर करता है इसलिए लीगल नोटिस को किसी अधिवक्ता के माध्यम से ही भेजना चाहिए ताकि उसमे विधिक रूप से किसी प्रकार की त्रुटी की सम्भावना ना रहे।

लीगल नोटिस में चेक किस वजह से जारी किया गया,दोनो पक्षो के बीच किस प्रकार का लेन-देन होता है,चेक बाउंस हो जाने के कारण तथा नोटिस प्राप्ति के 15 दिन के भीतर राशि चेक देने वाले व्यक्ति से वापस देने का निवेदन किया जाता है। चेक बाउंस के प्रकरण में बैंक से Return memo मिलने के 30 दिन के भीतर लीगल नोटिस भेजना  होता है। 30 दिन के बाद लीगल नोटिस भेजा जाता है तो न्यायालय में चेक बाउंस प्रकरण को संस्थित किए जाने का अधिकार चेक रखने वाला व्यक्ति खो देता है।

  लीगल नोटिस द्वारा 15 दिन का समय भुगतान किए जाने के लिए या चेक बाउंस के संबंध में मध्यस्थता करने के लिए चेक देने वाले व्यक्ति को दिया जाता है। उस समय के बीत जाने के बाद 30 दिन के भीतर न्यायालय में चेक बाउंस का प्रकरण दर्ज कर दिए जाने का अधिकार चेक प्राप्त करने वाले पक्षकार को प्राप्त हो जाता है। किसी युक्तियुक्त कारण से न्यायालय इस 30 दिन की अवधि को बढ़ा भी सकता है, लेकिन कारण युक्तियुक्त होना चाहिए।

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  लीगल नोटिस कैसे दे  :-  लीगल नोटिस

स्पीड पोस्ट या रजिस्टर एडी के माध्यम से भेजा जाता है तथा इससे जो रसीद प्राप्त होती है वह चेक बाउंस का वाद योजित करते  समय दस्तावेज का काम करती है। चेक देने वाले व्यक्ति का पता सही होना चाहिए और उसे उसी पते पर लीगल नोटिस दिया जाना चाहिए।

 मजिस्ट्रेट के न्यायालय का निर्धारण :- जिस थाना क्षेत्र के अंतर्गत वह बैंक होता है, जिस बैंक में चेक को भुनाने के लिए लगाया गया है और चेक बैंक में अनादर हो गया है, उस थाना क्षेत्र के क्षेत्राधिकार वाले न्यायालय में इस चेक बाउंस के परिवाद को संस्थित किया जाता है। कोर्ट फ़ीस चेक बाउंस के प्रकरण में कोर्ट फीस महत्वपूर्ण चरण होता है।

चेक बाउंस के प्रकरण में फीस के तीन स्तर दिए गए हैं। इन तीन स्तरों पर कोर्ट फीस का भुगतान स्टाम्प के माध्यम से किया जाता है। ये तीन स्तर निम्न हैं:

₹100000 राशि तक के चेक के लिए चेक में अंकित राशि की 5% कोर्ट फीस देना होती है।

₹100000 से ₹500000 तक के चेक के लिए राशि की 4% कोर्ट फीस देना होती है।

₹500000 से अधिक राशि के चेक के लिए राशि की 3% कोर्ट फीस देना होती है।

 परिवाद पत्र :-

परिवाद पत्र महत्वपूर्ण होता है। चेक बाउंस के प्रकरण में परिवाद पत्र मजिस्ट्रेट के न्यायालय के नाम से तैयार किया जाता है। इस परिवाद पत्र में भुगतान के संबंध में कुल लेनदेन का जो व्यवहार हुआ है, उस व्यवहार से संबंधित सभी बिंदुओं पर मजिस्ट्रेट को संज्ञान दिया जाता है तथा इस परिवाद पत्र में परिवादी का शपथ पत्र भी होता है जो शपथ आयुक्त द्वारा रजिस्टर होता है। चेक की मूल प्रति अनादर रसीद लीगल नोटिस की प्रति लीगल नोटिस भेजे जाते समय एक रसीद प्राप्त होती है, जिसे सर्विस स्लिप कहा जाता है, जिसमें लीगल नोटिस भेजे जाने का दिनांक अंकित होता है। वह स्लिप दस्तावेजों में लगानी होती है। गवाहों की सूची अगर प्रकरण में कोई गवाह है तो गवाहों की सूची भी डाली जाएगी।

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 प्रकरण रजिस्टर होना :- जब सारे दस्तावेज तैयार कर परिवादी द्वारा अपने अधिवक्ता के माध्यम से माननीय न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत कर दिए जाते हैं तो परिवाद न्यायालय द्वारा रजिस्टर कर लिया जाता है और एक परिवाद संख्या  न्यायालय द्वारा अलॉट कर दिया जाता है।

 सम्मन :- परिवाद दर्ज हो जाने के बाद विपक्षी को माननीय न्यायालय द्वारा सम्मन जारी किया जाता है। सम्मन में न्यायालय द्वारा विपक्षी को माननीय न्यायालय के समक्ष निर्धारित दिनांक और समय पर  उपस्थित होने हेतु आदेश दिया  जाता है।

पुनः सम्मन :- यदि आरोपी न्यायालय में उपस्थित होकर उक्त परिवाद में अपने लिखित अभिकथन नहीं कर रहा है तो ऐसी परिस्थिति में पुनः सम्मन न्यायालय द्वारा भेजा जाता है।

वारंट :–   यह प्रकरण एक आपराधिक प्रकरण होता है, जिसे प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट के न्यायालय द्वारा सुना जाता है। इस प्रकरण में आरोपी को बुलाने के लिए वारंट भी जारी किए जा सकते हैं। यदि आरोपी सम्मन के द्वारा माननीय न्यायालय में उपस्थित नहीं हो रहा है तो न्यायालय अपने विवेक के अनुसार जमानती या गैर जमानती किसी भी भांति का वारंट आरोपी के नाम संबंधित थाना क्षेत्र को जारी कर सकता है।

जमानत की प्रक्रिया:- चेक बाउंस के मामले में विपक्षी जब पहली बार माननीय न्यायालय के समक्ष उपस्थित होता है तो उसे माननीय न्यायालय में अपने अधिवक्ता के माध्यम से जमानत प्रार्थना पत्र देना होता है। चूंकि यह एक जमानतीय अपराध है इसलिए न्यायालय द्वारा विपक्षी को बिना जेल भेजे ही जमानत स्वीकार कर ली जाती है।

प्रति परीक्षण (Cross Examination) :- आरोपी जब न्यायालय में उपस्थित होता है तो वह निगोशिएबल एक्ट की धारा 145(2) का आवेदन देकर न्यायालय से क्रॉस प्रति परीक्षण (Cross Examination) करने का निवेदन करता है तथा न्यायालय द्वारा आरोपी पक्षकार को क्रॉस करने की अनुमति दी जाती है।

💐 उपधारणा करना :- इस प्रकरण में न्यायालय अवधारणा करता है कि चेक देने वाला व्यक्ति दोषी ही होगा अर्थात उसने चेक दिया ही है। चेक प्राप्त करने वाला व्यक्ति कहीं ना कहीं सही है। अब यहां पर आरोपी पक्षकार यह सिद्ध करेगा कि उसके द्वारा कोई चेक नहीं दिया गया है। यहां साबित करने का भार आरोपी पर होता है। यदि माननीय न्यायालय चाहे तो सुनवाई से पहले विपक्षी को चेक की कुल धनराशि का 20 % प्रतिशत तक परिवादी को देने का आदेश दे सकता है।

💐 समरी ट्रायल  :- यह एक समरी ट्रायल होता है, जिसे न्यायालय द्वारा शीघ्र निपटाने का प्रयास किया जाता है। इसमें बचाव पक्ष को बचाव के लिए साक्ष्य का उतना अवसर नहीं होता है, जैसा कि अवसर सेशन ट्रायल में होता है।

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💐 समझौता योग्य अपराध ( Compoundable offense ) :- यह अपराध समझौता योग्य होता है। यदि दोनों पक्षकार सुनवाई के दौरान आपस में समझौता कर न्यायालय से इस प्रकरण को खत्म करना चाहते हैं तो समझौता कर दिया जाता है तथा अपराध का शमन हो जाता है। 2018 में संशोधन किया गया है। यह संशोधन धारा 143 ए है जो नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट की है। इस धारा के अंतर्गत परिवादी पक्षकार एक आवेदन के माध्यम से आरोपी से अपने संपूर्ण धनराशि जो चेक में अंकित की गई है उसका 20% हिस्सा न्यायालय द्वारा दिलवाए जाने के लिए निवेदन कर सकता है और न्यायालय अपने आदेश के माध्यम से आरोपी से ऐसी धनराशि परिवादी को दिलवा सकता है।

💐 अंतिम बहस  :- यदि आरोपी प्रकरण में समझौता नहीं करता है और मुकदमे को आगे चलाना चाहता है तो ऐसी परिस्थिति में न्यायालय द्वारा आरोप तय कर मामले को अंतिम बहस के लिए रख दिया जाता है तथा दोनों पक्षकारों द्वारा आपस में अंतिम बहस होती।

💐 निर्णय (Order) :- अंत में मामला निर्णय पर आता है तथा कोर्ट इस प्रकरण में दोषसिद्धि होने पर आरोपी को 2 वर्ष तक का सश्रम कारावास या  या जितनी धनराशि का चेक है उससे दोगुनी धनराशि  माननीय न्यायालय पीड़ित पक्ष को देने का आदेश फरमा सकता है अथवा दोनो।


जमानतीय अपराध :- यहक जमानतीय श्रेणी का अपराध है, जिसमें यदि आरोपी की दोषसिद्धि हो जाती है और उसे न्यायालय द्वारा कारावास कर दिया जाता है तो ऐसी परिस्थिति में वह ऊपर के न्यायालय में अपील कर जमानत ले सकता है। इस अपराध में किसी भी स्तर पर समझौता किया जा सकता है।


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