धारा 307 भा०दं०सं० 1860 जघन्य अपराध नहीं

माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा हाल ही में अपने एक महत्त्वपूर्ण फैसले में निर्धारित किया है कि किशोर न्याय अधिनियम, 2015 के अंतर्गत धारा 307 भा०दं०सं० जघन्य अपराध की श्रेणी में नहीं आता है।

उल्लेखनीय है कि किशोर न्याय अधिनियम, 2015 द्वारा विभिन्न अपराधों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया है  :-  लघु प्रकृति, गंभीर प्रकृति एवं जघन्य प्रकृति के अपराध

लघु प्रकृति के अपराध वे अपराध हैं, जिनके लिए विधि द्वारा तीन वर्ष तक के अधिकतम दंड का प्रावधान हैं। वहीं गंभीर प्रकृति के अपराध की श्रेणी में तीन वर्ष से सात वर्ष तक के दंडनीय अपराध शामिल हैं। जबकि जघन्य प्रकृति के अपराध ऐसे अपराध हैं, जिनके लिए विधि द्वारा न्यूनतम सात वर्ष के दंड का प्रावधान है।

अनेक अपराध ऐसे हैं, जिनके लिए मृत्यु दंड, आजीवन कारावास अथवा दस वर्ष या बीस वर्ष तक के कठोर कारावास का प्रावधान भा०दं०सं० अथवा अन्य अधिनियम द्वारा निर्धारित किया गया है। परन्तु इनमें से कुछ मामले ऐसे हैं, जिनमें दंड अधिक होने पर भी न्यूनतम दंड का निर्धारण विधि द्वारा नहीं किया गया है।

माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा  शिल्पा मित्तल  बनाम  दिल्ली राज्य 

के मामले में निर्धारित किया गया है कि जिन अपराधों के लिए विधि न्यूनतम सात वर्ष के कारावास का प्रावधान नहीं करती है, चाहे उनमें अधिकतम दंड इससे अधिक हो, किशोर न्याय अधिनियम के अंतर्गत जघन्य प्रकृति के मामले नहीं माने जा सकते।

In Case of  Shilpa Mittal  vs. State of NCT of Delhi [Criminal Appeal No. 34 of 202 dated, 0January 09, 2020], Hon’ble SC held that – The purpose of the Act of 2015 is to ensure that children who come in conflict with law are dealt with separately and not like adults. After the unfortunate incident of rape on December 16, 2012 in Delhi, where one juvenile was involved, there was a call from certain sections of the society that juveniles indulging in such heinous crimes should not be dealt with like children. This incident has also been referred to by the Minister in her introduction. In these circumstances, to say that the intention of the Legislature was to include all offences having a punishment of more than 7 years in the category of ‘heinous offences’ would not, in our opinion be justified. When the language of the section is clear and it prescribes a minimum sentence of 7 years imprisonment while dealing with heinous offences then we cannot wish away the word ‘minimum’………………………………..an offence which does not provide a minimum sentence of 7 years cannot be treated to be an heinous offence.

माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्णय का सीधा लाभ 16 से 18 वर्ष की आयु वाले बाल अपचारीगण को प्राप्त होता है। जैसा प्रावधान है कि किशोर न्याय अधिनियम, 2015 के अंतर्गत जघन्य अपराध के मामलों में 16 से 18 वर्ष की आयु के अपचारी का प्रारंभिक निर्धारण किया जाता है कि उसका विचारण बालक के रूप में किया जाए अथवा एक वयस्क के रूप में। ऐसे में माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा जघन्य अपराध की श्रेणी का संक्षिप्त निर्वचन (strict interpretation) कर बहुत कम मामलों को ही जघन्य श्रेणी का अपराध निर्धारित किया है। यहाँ तक कि हत्या का प्रयास अंतर्गत धारा 307 भा०दं०सं० भी जघन्य श्रेणी में नहीं आता है। ऐसे में उक्त अपराध के लिए 16 से 18 वर्ष के अपचारी का विचारण वयस्क के रूप में नहीं किया जा सकता।

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