माननीय उच्च न्यायालय दिल्ली, नई दिल्ली
आदेश दिनांक :- 04/06/2021
जूही चावला आदि …..वादीगण
द्वारा अधिवक्ता : मिस्टर दीपक खोसला
बनाम
साइंस एंड इंजीनियरिंग रिसर्च बोर्ड आदि। ….प्रतिवादी
द्वारा अधिवक्ता : मिस्टर तुषार मेहता (सॉलिसिटर जनरल ऑफ इंडिया) आदि।
प्रचार के लिए था सूट: दिल्ली हाईकोर्ट ने 5जी रोलआउट के खिलाफ जूही चावला की याचिका खारिज की, 20 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया
बॉलीवुड अभिनेत्री जूही चावला और दो अन्य लोगो ने दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष एक मुकदमा दायर किया था, जिसमें तर्क दिया गया था कि जब तक 5G तकनीक “सुरक्षित प्रमाणित” नहीं हो जाती, तब तक इसके रोल आउट की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने भारत में 5जी तकनीक (जूही चावला और अन्य बनाम विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड और अन्य) के रोलआउट के खिलाफ बॉलीवुड अभिनेत्री जूही चावला द्वारा दायर याचिका को शुक्रवार को खारिज कर दिया।
यह देखते हुए कि चावला ने सुनवाई के वेब लिंक को सोशल मीडिया पर कैसे प्रसारित किया था।
न्यायमूर्ति जेआर मिधा की पीठ ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि यह मुकदमा केवल पब्लिसिटी के लिए दायर किया गया था।
इसलिए, अदालत चावला और अन्य वादीगण पर कानून की प्रक्रिया का दुरूपयोग करने पर 20 लाख रुपये का जुर्माना लगाती है।
चावला द्वारा लिंक को सार्वजनिक किए जाने के कारण सुनवाई में हुए व्यवधानों को ध्यान में रखते हुए, अदालत ने निर्देश दिया कि उपद्रवियों के खिलाफ अवमानना नोटिस जारी किया जाए।
उच्च न्यायालय ने दिल्ली पुलिस को आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई करने और अदालत के समक्ष एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश भी दिया।
Law of Crimes – Kidnapping & Abduction
न्यायमूर्ति जेआर मिधा ने फैसला सुनाते हुए कहा कि वाद दोषपूर्ण है और रख रखाव योग्य नहीं।
कोर्ट ने आगे कहा कि वादी ने न तो सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 80 के प्रावधानों का पालन किया है, बल्कि संहिता के अंतर्गत और भी कई नियमों का उल्लंघन किया है। *सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 80(1) के अंतर्गत सरकार के खिलाफ केस फाइल करने से पहले नोटिस दिया जाना जरूरी है।
उच्च न्यायालय ने कहा कि State of Andhra Pradesh v. Gundugola Venkata Suryanarayana Garu, AIR 1965 SC 11,
में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने यह अवधारित किया था कि सीपीसी की धारा 80 (1) के अंतर्गत नोटिस का उद्देश्य यह कि सरकार को संबंधित मामले पर पुण: विचार करने का मौका दिया जाए और न्यायालय से बाहर ही वह समझौता कर ले। सुप्रीम कोर्ट ने आगे यह भी अवधारित किया कि धारा 80(1) आदेशात्मक है और इसका कड़ाई से अनुपालन होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि क़ानून की आवश्यकताओं का अनुपालन करने वाले नोटिस की तामील करने में विफलता के लिए मुकदमा खारिज कर दिया जाएगा। निर्णय का प्रासंगिक भाग यहां पुन: प्रस्तुत किया जा रहा है :
The object of the notice under Section 80 is to give to the Government or the public servant concerned an opportunity to reconsider its or his legal position and if that course is justified to make amends or settle the claim out of Court. The section is imperative and must undoubtedly be strictly construed: failure to serve a notice complying with the requirements of the statute will entail dismissal of the suit. But the notice must be reasonably construed. Every venial error or defect cannot be permitted to be treated as a peg to hang a defence to defeat a just claim. In each case in considering whether the imperative provisions of the statute are complied with, the Court must face the following questions:
(1) whether the name, description and residence of the plaintiff are given so to enable the authorities to identify the person serving the notice;
(2) whether the cause of action and the relief which the plaintiff claims are set out with sufficient particularity;
Stylish clothes, Stylish life.
(3) whether the notice in writing has been delivered to or left at the office of the appropriate authority mentioned in the section; and
(4) whether the suit is instituted after the expiration of two months next after notice has been served, and the plaint contains a statement that such a notice has been so delivered or left. In construing the notice the Court cannot ignore the object of the Legislature to give to the Government or the public servant concerned an opportunity to reconsider its or his legal position.
If on a reasonable reading but not so as to make undue assumptions the plaintiff is shown to have given the information which the statute requires him to give, any incidental defects or errors may be ignored.”
(Emphasis Supplied)
In State of A.P. v. Pioneer Builders, A.P., (2006) 12 SCC also based on Section 80 of CPC.
In State of Kerala v. Sudhir Kumar Sharma, (2013) 10 SCC 178,
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 80(1) के अनुपालन के बिना दायर किए गए मुकदमे को सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 80(2) के तहत केवल एक आवेदन दाखिल करके नियमित नहीं किया जा सकता है।
वादी ने 28 मई 2021 को यह मुकदमा न्यायालय में दायर किया था, उस समय भी रजिस्ट्री ने उक्त केस की Maintability को लेकर के आपत्ति जताई थी। वादी ने यह समझाने के बजाय कि यह मामला कैसे मेंटेनेबल है, रजिस्ट्री से अनुरोध किया कि कोई बात नहीं आप इस मामले को दाखिल कर लो, जिसके बाद रजिस्ट्री ने इस मामले को इस न्यायालय के समक्ष आपत्तियों के अधीन सूचीबद्ध किया। न्यायालय का मानना है कि वादी जुर्माना ( liable for fine ) द्वारा दंडित किए जाने का अधिकारी है।
कोर्ट ने आगे आदेश दिया कि वादी द्वारा 1,95,594 रुपये की कमी वाली कोर्ट-फीस का भुगतान भी एक सप्ताह के भीतर किया जाएगा।
Law of Crimes – Culpable Homicide & Murder
वादी गणों के द्वारा कोविड-19 के कारणों की वजह से बची हुई फीस जमा करने के लिए समय मांगा गया था और वादी संख्या (1) 26 मई 2021 के आसपास साउथ अफ्रीका गया हुआ था। Section 149 of Code of Civil Procedure empowers this Court to extend the time to pay the deficient Court-fees.
इसलिए उपरोक्त प्रार्थना पत्र को आंशिक रूप से न्याय हित में स्वीकृत किया जाता है और वादी गणों को बची हुई कोर्ट फीस ₹ 1,95,594/- जमा करने के लिए 1 सप्ताह का समय दिया जाता है।
फैसला सुनाए जाने के बाद चावला और अन्य वादी की ओर से पेश अधिवक्ता दीपक खोसला ने आदेश पर रोक लगाने की मांग की।
उन्होंने आगे कहा कि बिना किसी कानूनी आधार के जुर्माने को वादीगणों पर थोपा गया है।
अनुरोध को खारिज करते हुए, न्यायमूर्ति मिधा ने टिप्पणी की,
“मामला खत्म हो गया है। आपके पास अपने कानूनी उपाय हैं।”
लागत एक सप्ताह के भीतर दिल्ली राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के पास जमा की जानी है और इसका उपयोग सड़क दुर्घटनाओं के पीड़ितों के लिए किया जाएगा।
What is the matter : Under Order 8 Rule 1 of CPC
बॉलीवुड अभिनेत्री जूही चावला ने वीरेश मलिक और टीना वाचानी (वादी) के साथ मिलकर दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष यह तर्क देते हुए मुकदमा दायर किया था कि जब तक 5G तकनीक “सुरक्षित प्रमाणित” नहीं हो जाती, तब तक इसके रोल आउट की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
चावला और अन्य ने तर्क दिया था कि यह एक स्थापित तथ्य था कि 5G तकनीक के कारण “आसन्न प्रकृति ( Imminent Nature ) का खतरा हो सकता है” और आरटीआई प्रतिक्रियाओं के अनुसार, इस पर कोई अध्ययन भी नहीं किया गया था।
वादी संख्या 1 जूही चावला जो पिछले एक दशक से ईएमएफ विकिरण के प्रभावों के खिलाफ सार्वजनिक रूप से और मुखर रूप से प्रचार कर रही हैं, कई व्यक्तियों ने उनसे देश की हवा में उपस्थित ‘साइलेंट किलर’ के खिलाफ कानूनी कार्यवाही शुरू करने का अनुरोध किया।
हालांकि, केंद्र सरकार ने तर्क दिया कि सीपीसी की धारा 80 और 91 के मद्देनजर मुकदमा चलने योग्य नहीं है।
केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बहस के दौरान कोर्ट में कहा कि मुकदमा तुच्छ है ( Not have any serious purpose or Value ) और संहिता की धारा 9 के तहत वर्जित है।
Findings Of The Court :
सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 91(1)(बी) के तहत या सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 1 नियम 8 के तहत प्रतिनिधि हित में वाद को बनाए रखने के लिए या मुकदमा चलाने के लिए छुट्टी देने का कोई मामला नहीं बनता है। पूर्वोक्त छुट्टी/अनुमति के बिना, क्योंकि वादी का वाद दोषपूर्ण है और निम्नलिखित कारणों से चलने योग्य नहीं है :-
1. Order VI Rule 2(1) of the Code of Civil Procedure
प्रावधान करता है कि वादपत्र में सारवान तथ्यों के विवरण संक्षिप्त रूप में होंगे लेकिन ऐसा कोई साक्ष्य नहीं होगा जिससे उन्हें साबित किया जाना हो। हालांकि वादी गणों के द्वारा सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के आदेश 6 नियम 2 का पालन नहीं किया।
वादीगणों ने वाद में साक्ष्यों को शामिल किया है।
2. Order VI Rule 9 of the Code of Civil Procedure
प्रावधान करता है कि किसी भी दस्तावेज़ की सामग्री को वादपत्र में तब तक निर्धारित नहीं किया जाएगा जब तक कि दस्तावेज़ या उसके किसी भाग के सटीक शब्द महत्वपूर्ण न हों। वादीगण ने सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश VI नियम 9 का अनुपालन नहीं किया है और वाद में दस्तावेजों को पुन: प्रस्तुत किया है।
3. वाद अनावश्यक निंदनीय, तुच्छ और तंग करने वाली बातों से भरा हुआ है, जो सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश VI नियम 16 के तहत निरस्त किए जाने योग्य हैं।
4. वादीगणों ने इस वाद में 33 प्रतिवादियों को शामिल किया हैं। हालाँकि, वाद एक मुकदमे में 33 प्रतिवादियों को शामिल करने में सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश I नियम 3 के अनुपालन को नहीं दर्शाता है।
5. वादीगणों ने वाद पत्र का सत्यापन नहीं किया जो कि सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 6 नियम 15 के तहत आदेशात्मक है।
6. वादीगणों ने वाद पत्र के साथ दिए गए अपने शपथ पत्र में कहा कि केवल पैरा नंबर 1 से 8 तक कही गई बात हमारे निजी ज्ञान से सत्य हैं। इसके अलावा लिखित तथ्य प्राप्त सूचनाओं और कानूनी सलाह के आधार पर प्रेषित किए गए हैं। इसका मतलब यह है कि वादीगणों को उपरोक्त तथ्य के बारे में कोई भी निजी ज्ञान नहीं था। सूचनाओं और कानूनी सलाह पर आधारित सम्पूर्ण वाद मेंटेनेबल नहीं है।
7. Section 34 of *Specific Relief Act, 1963
घोषणात्मक वादों से संबंधित है। किसी भी कानूनी लाभ का अधिकारी व्यक्ति एसे अन्य व्यक्ति के खिलाफ मुकदमा दायर कर सकता है जोकि उसके अधिकार को देने से इंकार करें या इंकार करने में दिलचस्पी रखें। वर्तमान केस में वादीगणों ने प्रतिवादीगणो से कभी भी अपने अधिकारों की मांग नहीं की। इसलिए ऐसा कोई मौका नही था जब प्रतिवादीगणों ने वादीगणों के अधिकारों को देने से इनकार किया हो या ऐसी दिलचस्पी दिखाई हो। इसलिए इस वाद में मांगी गई राहत संदेह के घेरे में है।
अदालत ने कहा, कि “वादी ने कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग किया है। वादी पर 20 लाख रुपये का जुर्माना लगाया जाता है। ऐसा प्रतीत होता है कि मुकदमा प्रचार के लिए था। जूही चावला ने सोशल मीडिया पर सुनवाई का लिंक प्रसारित किया।”
गौरतलब है कि पिछली सुनवाई के दौरान एक अज्ञात व्यक्ति द्वारा अभिनेत्री जूही चावला की फिल्मों के गाने गाए जाने के कारण सुनवाई स्थगित कर दी गई थी। दिल्ली उच्च न्यायालय ने उक्त व्यक्ति के खिलाफ अवमानना का नोटिस जारी कर दिल्ली पुलिस को कार्रवाई करने के लिए निर्देशित किया है।
Read the Judgement: Attachment
So this happened. Actress Juhi chawla appeared in the court wrt her petition on 5g and then some attendees started singing leading to the court asking Delhi police to trace the singers. You can see a visibly upset Kapil Sibal too in the frame. #JuhiChawla #DelhiHighCourt #song pic.twitter.com/vmSH5iAU6A
— Vipul jain (@vipuljain69) June 2, 2021