यदि विवाह की पवित्रता के बिना एक साथ रहने का विकल्प चुनने वाले व्यक्तियों को जीवन के संरक्षण के अधिकार से वंचित कर दिया जाता है तो यह न्याय का उपहास होगा

 माननीय उच्च न्यायालय पंजाब एंड हरियाणा (चंडीगढ़)
क्रिमिनल रिट पिटिशन संख्या. 4533/2021 (O&M)
आदेश दिनांक 18 मई 2021
सोनिया आदि      बनाम      स्टेट ऑफ हरियाणा
अंतर्गत धारा :- अनुच्छेद 226 भारतीय संविधान

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के समक्ष लिव-इन-रिलेशनशिप के सम्बन्ध में एक और रीट पिटीशन पर सुनवाई की गई जिसमें पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने अपने हाल ही में दिए गए आदेश से अलग अवधारणा प्रकट की।




माननीय उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा की लिव-इन-रिलेशनशिप की अवधारणा सभी के लिए स्वीकार्य नहीं हो सकती है। लेकिन ऐसा भी नहीं कहा जा सकता कि इस प्रकार की रिलेशनशिप गैरकानूनी है। या फिर बगैर विवाह के साथ रहने से किसी अपराध का गठन होता है।
लिव-इन-रिलेशनशिप में रह रहे कपल्स ने ऑनर किलिंग के डर से माननीय उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।

” यदि विवाह की पवित्रता के बिना एक साथ रहने का विकल्प चुनने वाले व्यक्तियों को जीवन के संरक्षण के अधिकार से वंचित कर दिया जाता है तो यह न्याय का उपहास होगा “


लिव-इन #रिलेशनशिप सामाजिकता और नैतिकता के आधार पर स्वीकार्य नहीं है जस्टिस एच.एस. मदान

मामले के संक्षिप्त तथ्य
याचिकाकर्ता संख्या एक की उम्र लगभग 22 वर्ष है। जिसके माता-पिता उस पर अपनी मर्जी के लड़के से जो कि उससे उम्र में काफी बड़ा है शादी करने का दबाव बना रहे हैं और ऐसा नहीं करने पर उसे उसके गम्भीर परिणाम भुगतने की धमकी दे रहे हैं। जिसकी वजह से याचिकाकर्ता संख्या एक, याचिकाकर्ता संख्या दो अनिल के साथ शादी होने तक लिव इन रिलेशनशिप में रहने का फैसला करती है। इसके साथ ही उनका कहना है कि उनके घरवाले उनका यह रिश्ता कभी भी कबूल नहीं करेंगे क्योंकि वे अलग-अलग जाति से सम्बन्ध रखते हैं। याचीगणों ने एसपी करनाल को भी अपनी सुरक्षा के लिए प्रार्थना पत्र दिया था लेकिन उस पर कोई कार्यवाही नहीं की गई। जीवन के खतरे को देखते हुए याचीगणों  ने माननीय न्यायालय के समक्ष क्रिमिनल रिट पिटिशन दाखिल की है।

एडिशनल जनरल एडवोकेट श्री विशाल कश्यप ने कहा कि कपल्स शादीशुदा नहीं है, इसलिए उन्हें सुरक्षा नहीं दी जा सकती क्योंकि अभी हाल ही में माननीय उच्च न्यायालय की दूसरी पीठ ने इसी तरह के मामले को खारिज कर दिया था जिसमें लिव इन रिलेशनशिप मे रह रहे कपल्स द्वारा प्रोटेक्शन की मांग की गई थी।

माननीय उच्च न्यायालय की अवधारणा

माननीय उच्च न्यायालय का यह मानना है कि याचीगण माननीय न्यायालय से न तो शादी करने की आज्ञा मांग रहे हैं और ना ही अपने रिश्ते की मंजूरी। उनकी प्रार्थना तो केवल याचिकाकर्ता संख्या एक के परिवारजनों से सुरक्षा के लिए है। याचिगणो ने इस न्यायालय से भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के अन्तर्गत जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा की मांग की है। इस न्यायालय ने पहले भी और हाल ही में भी घर से भागे हुए कपल्स को सुरक्षा दी है चाहे वह शादीशुदा थे या लिव-इन-रिलेशनशिप में।


We have drafted a series of short question papers to test your knowledge on various subjects of Law. Hope you will enjoy while learning. So let’s start

हिंदू मैरिज एक्ट के संबंध में माननीय न्यायालय की कुछ महत्वपूर्ण जजमेंट :-

राजविंदर कौर आदि    बनाम   स्टेट ऑफ पंजाब 2014
माननीय न्यायालय ने अपने निर्णय में यह अवधारित किया कि भागे हुए जोड़े को सुरक्षा प्रदान करने के लिए विवाह आवश्यक नहीं है। पुलिस अधिकारियों को यह निर्देश दिया गया कि वे यह सुनिश्चित करे कि किसी के भी द्वारा कपल्स के जीवन और स्वतंत्रता को नुकसान ना पहुंचा जाए। कुछ इसी तरह की अवधारणा
राजीव कौर    बनाम    स्टेट ऑफ पंजाब 2019
और
प्रिया प्रीत कौर  बनाम  स्टेट ऑफ पंजाब 2021
में माननीय न्यायालय द्वारा अवधारित की गई।
विभिन्न न्यायालयो ने ऐसे बहुत से भागे हुए जोड़ों को सुरक्षा प्रदान की है जिन्होंने शादी नहीं की थी।
माननीय उच्च न्यायालय पंजाब एंड हरियाणा ने अपने निर्णय में इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा हाल ही में दिए गए निर्णय का भी हवाला दिया।
कामिनी देवी वर्सेस स्टेट ऑफ यूपी 2021 उच्च न्यायालय इलाहाबाद और भगवानदास वर्सेस स्टेट ऑफ दिल्ली 2011 SCC 396.

यहां तक की द प्रोटेक्शन ऑफ वूमेन फ्रॉम डॉमेस्टिक वायलेंस एक्ट 2005, मे भी एक ऐसी महिला जो घरेलू रिश्ते में है उसकी सुरक्षा और भरण पोषण का प्रावधान किया गया है और ध्यान रखने वाली दिलचस्प बात यह है कि उस एक्ट में पत्नी शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया। इस प्रकार पार्लियामेंट द्वारा फीमेल लिव- इन-पार्टनर्स और लिव-इन-कपल्स के बच्चों को पूरी सुरक्षा प्रदान की गई है। भारत के संविधान में निहित अनुच्छेद 21 में प्रावधान है कि वह अपने नागरिको को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार इस शर्त के साथ प्रदान करता है कि उन्हें विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा  इन अधिकारो से वंचित नही किया जाएगा।
In the case of Shakti Vahini Versus Union of India and others, 2018(5) R.C.R ( Criminal) 981 the Supreme court has held “The right to exercise Assertion of choice is an insegregable facet of liberty and dignity.That is why the French philosopher and thinker, Simone Weil, has said :- “Liberty, taking the word in its concrete sense consists in the abilityto choose.” इस स्तर पर कोई भी ऑनर किलिंग के मामलों को नजर अंदाज नहीं कर सकता जो कि उत्तर भारत में खासकर पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में प्रचलित हैं। कपल्स अपने परिवार की इच्छा के विरुद्ध और कभी-कभी अपनी कास्ट और धर्म से अलग जाकर शादी करते हैं परिणाम स्वरूप ऑनर किलिंग जैसी घटनाएं घटित होती है। यदि आप बालिग हो और आपने अपना पार्टनर पसंद कर लिया है तो कोई कारण नहीं बनता कोई दूसरा व्यक्ति, आपके परिवार का सदस्य कोई ऑब्जेक्शन करें या फिर आपकी शांतिपूर्ण जीवन में बाधा डाले।
ऐसे अवसर पर राज्य को चाहिए कि उनकी सुरक्षा और व्यक्तिगत स्वतंत्रता सुनिश्चित करें।
यदि न्यायालय द्वारा कोई ऐसी अवधारणा अपनाई जाती है जिसमें सुरक्षा अस्वीकार कर दी जाती है तो न्यायालय भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में दिए गए नागरिकों को जीवन जीने के अधिकार और स्वतंत्रता का अधिकार को पूरा करने में विफल हो जाएगा और साथ ही साथ Rule of Law को बनाए रखने में भी विफल हो जाएगा।
यहां याचिकाकर्ताओं, जो कि बालिग हैं, ने विवाह की पवित्रता के बिना एक साथ रहने का निर्णय लिया है और यह अदालतों का काम नहीं है कि वे उन्हें उनके फैसले के आधार पर आंकें।
माननीय उच्च न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के एक और जजमेंट ( S. Khushboo V. Kanniammal, (2010) 5 SCC 600 ) का हवाला देते हुए कहा कि लिव-इन-रिलेशनशिप जायज है और दो बालिग कपल्स का एक साथ लिव-इन-रिलेशनशिप में रहना कोई गैर कानूनी कार्य या अपराध नहीं है।

कोर्ट ने यह भी माना कि नैतिकता और  आपराधिकता दोनो अलग-अलग चीजें हैं। यदि याचिगणों ने कोई अपराध ही नही किया है तो क्यों ना उनकी सुरक्षा मुहैया कराने की प्रार्थना स्वीकार की जाय। इसलिए पूरे सम्मान के साथ, समन्वय पीठों द्वारा दिए गए निर्णयों के संबंध में, जिन्होंने लिव-इन-रिलेशनशिप में रहने वाले जोड़ों को सुरक्षा से वंचित कर दिया है, यह अदालत उसी दृष्टिकोण को अपनाने में असमर्थ है।
मैं प्रतिवादी संख्या 2 को इस आदेश की प्रति प्राप्त होने की तिथि से एक सप्ताह की अवधि के भीतर याचिकाकर्ताओं  के प्रतिनिधित्व पर निर्णय लेने के निर्देश के साथ इस याचिका का निपटान करता हूं कि यदि उनके जीवन और स्वतंत्रता को कोई खतरा है तो उन्हे सुरक्षा प्रदान करें।
यह स्पष्ट किया जाता है कि यह आदेश याचिकाकर्ताओं द्वारा किए गए कानून के उल्लंघन के लिए कानूनी कार्रवाई से बचाने के लिए कोई सुरक्षा प्रदान नहीं करेगा।

आदेश दिनांक 18 मई 2021

जस्टिस जय श्री ठाकुर
पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट

Leave a Comment