माननीय केरल उच्च न्यायालय ने वादी और प्रतिवादी के वैवाहिक जीवन से पैदा हुए बच्चे का डीएनए टेस्ट कराने की अनुमति प्रदान कर दी। याचिका में वादी द्वारा अपनी पत्नी के जारकर्म/adultery/व्यभिचार को साबित करने के लिए उनके वैवाहिक जीवन से उत्पन्न हुए बच्चे का डीएनए टेस्ट कराने की मांग की गई थी।
माननीय जस्टिस ए.मोहम्मद मुस्ताक और जस्टिस डॉक्टर कौसर एडप्पागठ(Kauser Edappagath) की पीठ मूल प्रश्न पर सुनवाई कर रही थी कि क्या तलाक के लिए दाखिल की गई याचिका में पति द्वारा पत्नी पर व्याभिचार पूर्ण जीवन जीने और विश्वासघात के आरोप को साबित करने के लिए बच्चे का डीएनए टेस्ट कराने के निर्देश पारित किए जा सकते हैं? जबकि बच्चा उक्त याचिका में पक्षकार नहीं है।
Heinous crimes such as under 376 IPC, can not be compounded or proceedings, can not be quashed merely because the prosecutrix decides to marry the accused: Allahabad High Court
Background of the case (मामले की पृष्ठभूमि):
याचिकाकर्ता के द्वारा विवाह विच्छेद करने के लिए एक याचिका प्रधान परिवार न्यायधीश तिरुवंतपुरम(केरल) के समक्ष दाखिल की गई जिसमें याचिकाकर्ता द्वारा पत्नी पर क्रूरता, व्यभिचार (एडल्ट्री) और वैवाहिक जीवन के परित्याग का आरोप लगाया।
याचिकाकर्ता का मुख्य आरोप यह है कि प्रतिवादी संख्या एक (पत्नी) के प्रतिवादी संख्या दो (बहन का पति/जीजा) के साथ नाजायज संबंध है और उन दोनों के संसर्ग से ही बच्चा पैदा हुआ है। इस प्रकार पत्नी के व्यभिचार पूर्ण जीवन और बच्चे के जैविक पिता की जानकारी करने के लिए बच्चे और उसकी पत्नी का डीएनए परीक्षण कराया जाना परम आवश्यक है।
परिवार न्यायालय ने उक्त याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि उक्त बच्चे को याचिका में पक्षकार नहीं बनाया गया है और बच्चे को बिना पक्षकार बनाएं उसके पैटरनिटी और लेजिटिमेसी का निर्धारण नहीं किया जा सकता। इसलिए याचिका को इसी आधार पर खारिज कर दिया गया जिसके आदेश के विरूद्व याचिकाकर्ता द्वारा माननीय केरल उच्च न्यायालय के समक्ष अपील की गई।
याचिका का आधार(Base of Divorce petition):
याचिकाकर्ता और प्रतिवादी संख्या एक का विवाह 5 मई 2006 को हुआ था और बच्चे का जन्म 9 मार्च 2007 को हुआ। याचिकाकर्ता द्वारा अपनी याचिका में यह दावा किया गया कि वह मिलिट्री में सर्विस करता है तथा लद्दाख में सेवारत था और शादी के 22 दिनों बाद ही वह अपनी सर्विस पर चला गया था। इन 22 दिनों के दौरान और इसके पश्चात भी उनके बीच में प्रतिवादी संख्या एक (पत्नी) के असहयोग के चलते किसी भी प्रकार के शारीरिक संबंध नहीं बने। याचिकाकर्ता का निश्चित तौर पर मामला यह है कि उसकी पत्नी व प्रतिवादी संख्या दो (उसकी बहन का पति), दोनो के आपस में अवैध संबंध है और उनके अवैध संबंध के चलते ही बच्चे का जन्म हुआ है। याचिकाकर्ता ने विशिष्ट रूप से यह भी दलील दी है कि वह बांझपन से पीड़ित था परिणामस्वरूप बच्चा पैदा करने में असमर्थ था। इसलिए माननीय न्यायालय के समक्ष याचिका दाखिल की गई है ताकि उक्त बच्चे का डीएनए परीक्षण करा लिया जाए जिससे कि यह साबित हो जाएगा कि याचिकाकर्ता बच्चे का जैविक पिता नहीं है।
प्रतिवादी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा अपनी बहस के दौरान प्रस्तुत किए गए तर्क:
प्रतिवादी द्वारा उक्त याचिका का यह कहते हुए विरोध किया गया कि याचिकाकर्ता द्वारा अपने अधिवक्ता के माध्यम से भिजवाए गए कानूनी नोटिस और यहां तक की सर्विस रिकॉर्ड में भी याचिकाकर्ता ने यह माना है कि वह बच्चे का पिता है। इतना ही नहीं बच्चे के जन्म प्रमाण पत्र में भी यह दर्शाया गया है कि याचिकाकर्ता ही बच्चे का पिता है।
Presumption of Legitimacy (वैधता का अनुमान):
प्रतिवादी संख्या एक की तरफ से तर्क प्रस्तुत करते हुए विद्वान अधिवक्ता ने इंडियन एविडेंस एक्ट की धारा 112 मे विश्वास जाहिर करते हुए कहां की एक बार विवाह की वैधानिकता यदि साबित हो जाए तो उस विवाह से पैदा हुए बच्चों की वैधता के बारे में मजबूत धारणा है कि सन्तान का जन्म पति-पत्नी के संसर्ग से ही हुआ है जब तक कि अनुमान का खंडन करने के लिए मजबूत और निर्णायक साक्ष्य ना हो। अधिवक्ता द्वारा अपनी बहस के दौरान आगे कहा गया कि यहां तक की पत्नी द्वारा व्यभिचार का सबूत भी अपने आप में इस संभावना को समाप्त नही कर सकता। भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 112 द्वारा निहित उप धारणा को केवल तभी समाप्त किया जा सकता है यदि पति-पत्नी एक दूसरे की पहुंच से बाहर हो। इसलिए डीएनए टेस्ट कराने के लिए दाखिल की गई उक्त याचिका को निरस्त किया जाना परम आवश्यक है।
पत्नी की तरफ से पेश अधिवक्ता द्वारा यह भी कहा गया कि यह एक सुस्थापित विधि है कि किसी को भी विश्लेषण हेतु रक्त का नमूना देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता द्वारा अपनी बहस के दौरान प्रस्तुत किए गए तर्क:
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता द्वारा माननीय न्यायालय के समक्ष तर्क प्रस्तुत करते हुए कहा कि बिना डीएनए टेस्ट कराए याचिकाकर्ता के द्वारा यह असंभव होगा कि वह अपनी पत्नी पर लगाए गए व्यभिचार पूर्ण जीवन के आरोपों को साबित कर पाए। इसलिए माननीय न्यायालय को बच्चे और प्रतिवादी संख्या 1 का डीएनए टेस्ट कराए जाने का निर्देश दिया जाना परम आवश्यक है। अधिवक्ता ने अपनी बहस में आगे कहा कि प्रथम दृष्टया यह एक मजबूत मामला बनता है।
Bhabani Prasad Jena v. Convenor Secretary, Orissa State Commission for Women and Another (AIR 2010 SC 2851)
माननीय न्यायालय द्वारा उक्त मामले में यह अवधारित किया कि आमतौर पर न्यायालय को डीएनए टेस्ट और पितृत्व(Paternity test) कराने के आदेश पारित नही करने चाहिए। इस तरह का आदेश केवल तभी दिया जा सकता है यदि इसके लिए प्रथम दृष्टया मजबूत मामला बनता है।
Opinion of the Court (न्यायालय की अवधारणा):
इसी तरह के एक मामले में माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्णय सुनाया गया था जो कि इस प्रकार है:
Dipanwita Roy v. Ronobroto Roy (AIR 2015 SC 418):
[ ] इस मामले में जिस प्रश्न का उत्तर दिया जाना है वह है अपीलकर्ता की पत्नी की बेवफाई के संबंध में। प्रतिवादी-पति ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत दायर की गई याचिका में पत्नी की बेवफाई के संबंध में दावा किया है। अपीलकर्ता-पत्नी से पैदा हुए लड़के के पिता के नाम को वह उजागर करना चाहता है। पत्नी के व्यभिचार पूर्ण जीवन के आरोप को प्रमाणित करने की प्रक्रिया में प्रतिवादी-पति ने परिवार न्यायालय के समक्ष डीएनए परीक्षण कराने के लिए प्रार्थना पत्र दाखिल किया था, जिससे कि यह साबित हो जाए कि अपीलकर्ता-पत्नी से पैदा हुए बच्चे का वह जैविक पिता है या नहीं। प्रतिवादी को यह महसूस होता है कि केवल डीएनए परीक्षण के द्वारा ही वह अपने आरोपो (अपीलकर्ता-पत्नी की बेवफाई) की पुष्टि कर सकता है। हम उससे सहमत हैं। माननीय न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि हमारा ऐसा मानना है कि बगैर डीएनए परीक्षण के प्रतिवादी (पति) के लिए अपनी याचिका में पत्नी पर लगाए गए व्यभिचार के आरोपों को साबित करना असंभव होगा। इसलिए हम उच्चतम न्यायालय द्वारा जारी किए गए निर्देश से सहमत हैं। डीएनए परीक्षण कराए जाने का निर्देश पूरी तरीके से न्याय हित में है। डीएनए परीक्षण सबसे अधिक वैध और वैज्ञानिक रूप से सही तरीका है, जिससे कि पति अपनी पत्नी की बेवफाई के दावे को स्थापित करने के लिए या साबित करने के लिए इस्तेमाल कर सकता है। इसके साथ ही पति के द्वारा लगाए गए आरोपों का खंडन करने के लिए पत्नी के पास भी सबसे सही और प्रमाणिक तरीका यही है और इससे यह भी साबित हो जाता है कि वह व्यभिचारी, विश्वासघाती और बेवफा नही थी। इसलिए यदि अपीलकर्ता की पत्नी चरित्रहीन नहीं है और अपने आप में ठीक है तो वह ऐसी ही साबित होगी।
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Nandlal Wasudeo Badwaik VS.
Lata Nandlal Badwaik & Others (AIR 2014 SC 932),
[ ] सर्वोच्च न्यायालय ने यह अवधारित किया कि एक वास्तविक डीएनए परीक्षण का परिणाम वैज्ञानिक रूप से सटीक है और जब कानून के अनुसार परिकल्पित और निर्णायक सबूत के बीच विरोध होता है,तब विश्व समुदाय द्वारा मान्यता प्राप्त वैज्ञानिक तकनीक पर आधारित प्रमाण स्वीकार किए जाते हैं। माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा स्थापित Dipanwita Roy & Nandlal Wasudeo Badwaik विधि के अनुसार यह मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करता है कि तलाक के लिए आधार बनाने वाले आरोपों की सत्यता को निर्धारित करने के लिए न्यायालय को डीएनए परीक्षण कराए जाने के निर्देश देने चाहिए, यदि प्रथम दृष्टया एक मजबूत मामला बनता है तब।
[ ] माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा Sharda VS. Dharampal (AIR 2003 SC 3450), के मामले में यह अवधारित किया कि परिवार न्यायालय के पास व्यक्ति का मेडिकल परीक्षण कराने के लिए आदेश पारित करने की शक्ति है और ऐसा आदेश किसी भी स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन नहीं करता। माननीय न्यायालय ने अपने आदेश में आगे यह भी कहा कि चिकित्सीय परीक्षण कराने का आदेश देने की शक्ति का प्रयोग करते समय परिवार न्यायालय को संयम बरतना चाहिए और संबंधित मामले में इस तरह के आदेश पारित करने के लिए अदालत के समक्ष प्रथम दृष्टया एक मजबूत मामला और पर्याप्त सामग्री होनी चाहिए।
हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1)(i) के तहत तलाक की डिक्री प्राप्त करने के लिए याचिकाकर्ता को यह साबित करना आवश्यक होगा कि विवाह होने के पश्चात उसके जीवन साथी ने किसी अन्य व्यक्ति के साथ स्वैच्छिक संभोग किया था। यह साबित करने का भार पूर्ण रूप से याचिकाकर्ता पर रहेगा।
न्यायालय ने माना कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि बच्चे का डीएनए परीक्षण परिणाम उक्त आरोप को साबित करने के लिए सबसे अच्छा साक्ष्य होगा। साक्ष्य अधिनियम की धारा 45 के तहत डीएनए विशेषज्ञ की राय प्रासंगिक है। न्यायालय किसी भी पक्ष को ऐसे साक्ष्य को प्रस्तुत करने से नही रोकेगा जोकि अपने मामले को साबित करने के लिए प्रासंगिक हो सकते हैं। इस प्रकार, हम मानते हैं कि जब पति पत्नी पर व्यभिचार और विश्वासघात का आरोप लगाते हुए तलाक की डिक्री चाहता है और उनके विवाह के निर्वाह के दौरान पैदा हुए बच्चे के पितृत्व विवाद को सुलझाने के लिए, व्यभिचार के दावे को स्थापित करने और बच्चे की वैधता के सम्बन्ध में भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 112 पर अनुमान व्यक्त किए बिना न्यायालय डीएनए परीक्षण का आदेश दे सकता है।
Infertility Certificate (inability to conceive children or young):
गवाह के रूप में तिरुवंतपुरम मेडिकल कॉलेज में प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग के सहायक प्रोफेसर की परीक्षा की गई। वह एक बांझपन विशेषज्ञ है। उसके द्वारा याचिकाकर्ता को जारी किया गया इनफर्टिलिटी सर्टिफिकेट न्यायालय में प्रस्तुत किया गया। प्रमाण पत्र में यह दावा किया गया है कि याचिकाकर्ता Oligoasthenozoospermia ( ओलिगोएस्टेनोज़ोस्पर्मिया ) से
पीड़ित है। यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें शुक्राणुओं की संख्या बहुत कम होती है, शुक्राणुओं की गतिशीलता कम होती है, और असामान्य शुक्राणु होते है। यह पुरुष बांझपन का सबसे आम कारण है। डॉक्टर ने यह भी साक्ष्य दिया कि याचिकाकर्ता के पिता बनने की कोई संभावना नहीं है। याचिकाकर्ता के मामले को समर्थन करने वाला प्रथम दृष्टया यह एक मजबूत साक्ष्य है जिससे कि यह साबित होता है कि वह बच्चे का जैविक पिता नहीं है। हमारा यह मानना है कि याचिकाकर्ता का मामला प्रथम दृष्टया डीएनए टेस्ट के आदेश पारित किए जाने के लिए मजबूत मामला है। याचिकाकर्ता द्वारा प्रतिवादी संख्या एक पर लगाए गए व्यभिचार और चरित्रहीनता के आरोप को साबित करने और बच्चे की वैधता को जानने के लिए डीएनए परीक्षण सबसे अधिक विश्वसनीय और वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित विधि है।
जैसे कि माननीय उच्चतम न्यायालय ने Nandlal Wasudeo Badwaik के मामले में अवधारित किया कि कोई उप धारणा विज्ञान द्वारा स्थापित किसी तथ्य की सच्चाई पर प्रबल नहीं हो सकती।
पारित आदेश ( Passed Order ):
याचिकाकर्ता और प्रतिवादी संख्या 1 के पुत्र का डीएनए परीक्षण राजीव गांधी सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी, तिरुवंतपुरम में किया जाएगा। निचली अदालत राजीव गांधी सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी से सलाह कर तारीख और समय तय करेगी। प्रतिवादी संख्या 1 बच्चे के साथ केंद्र जाएगा। याचिकाकर्ता भी मौजूद रहेगा। बच्चे और याचिकाकर्ता के डीएनए सैंपल लैबोरेट्री द्वारा याचिकाकर्ता और प्रतिवादी संख्या 1 की मौजूदगी में प्राप्त किए जाएंगे। याचिकाकर्ता उक्त खर्च वहन करे। दोनों पक्षकारों को अपनी-अपनी मूल याचिका की लागत वहन करने का निर्देश दिया जाता है।
जस्टिस ए. मोहम्मद मुस्ताक
जस्टिस डॉक्टर कौसर एडप्पागठ
दिनांक:- 14/09/2021