Delhi High Court dismissed the anticipatory bail plea of ​​the woman who allegedly threatened Man of filing false rape case

दिल्ली हाईकोर्ट ने हनी ट्रैप केस में झूठा फंसाने वाली महिला की अग्रिम जमानत याचिका खारिज की।

Delhi High Court dismissed the anticipatory bail plea of ​​the woman who allegedly threatened Man of filing false rape case.

माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक युवक को महिला द्वारा अपने बॉयफ्रेंड के साथ मिलकर हनी ट्रैप के झूठे केस में फंसाने वाली महिला की अग्रिम जमानत याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि याचिकाकर्ता और सह-अभियुक्त निखिल भट्ठल भारतीय दंड संहिता की धारा 328 (अपराध करने के आशय से विष/Poison इत्यादि द्वारा उपहित/Hurt कारित करना) के तहत अपराध के आरोपी है जो कि अपने आप में गंभीर प्रकृति का अपराध है।



अभियोजन पक्ष के कथन संक्षेप में निम्न प्रकार हैं:-
शिकायतकर्ता ऋषभ जैन जोकि मार्बल का बिजनेस करता हैं, ने साउथ रोहिणी दिल्ली थाने पर निखिल भट्ठल और उसकी महिला मित्र ईशु उर्फ बॉबी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता,1860 की धारा 328/389 और 34  के तहत एक एफ.आई.आर दिनांक 10/04/2021 को दर्ज करवाई। शिकायतकर्ता द्वारा यह आरोप लगाया गया कि निखिल भट्ठल एक दिन उसकी शॉप पर आया और अपने घर को रिनोवेशन कराने हेतु अच्छी क्वालिटी के पत्थर और टाइल्स की मांग रखी। साथ ही साथ आरोपी ने जोर देकर कहा कि शिकायतकर्ता को उनके घर जरूर आना चाहिए। इस पर शिकायतकर्ता ऋषभ जैन आरोपी के घर पर गया जहां पर आरोपी निखिल भट्ठल ने उसे अपनी महिला मित्र ईशु @ बॉबी से मुलाकात करवाई और कहा कि वे दोनो लिव-इन-रिलेशनशिप में रहते हैं। शिकायतकर्ता द्वारा आगे यह कहा गया है कि याचिकाकर्ता द्वारा उसे पीने के लिए सॉफ्ट ड्रिंक दी गई जिसे पीने के बाद शिकायतकर्ता को चक्कर आने लगे। इसके बाद याचिकाकर्ता शिकायतकर्ता के करीब जाकर उसके सर को दबाने लगी और धीरे-धीरे शिकायतकर्ता बेहोश हो गया तथा होश में आने पर वह यह देखकर आश्चर्यचकित हो गया कि याचिकाकर्ता ईशु उर्फ बॉबी उसके प्राइवेट पार्ट्स(उजबेखास) को रब कर रही थी। जिसके बाद शिकायतकर्ता रूम से बाहर आया और उसने निखिल भट्ठल को फोन किया तो उसने 30 मिनट इंतजार करने के लिए कहा लेकिन वह 5-10 मिनट में ही आ गया जिसके बाद शिकायतकर्ता ने उसे सारी बातें बताई जिस पर निखिल भट्ठल बहुत गुस्से में आ गया और उसने याचिकाकर्ता ईशु उर्फ बॉबी को पीटना शुरू कर दिया और उसका मोबाइल फोन तोड़ दिया। कुछ समय बाद सह-अभियुक्त निखिल भट्ठल ने शिकायतकर्ता को यह कहते हुए वहां से भेज दिया कि वह उसे बाद मे कॉल करेगा और मामले को खत्म करेगा। इसके बाद निखिल भट्ठल के द्वारा उससे टेलीविजन खरीदने के लिए ₹200000 और मोबाइल फोन खरीदने के लिए ₹100000 और 30 से 45 लाख रुपए अपनी गर्लफ्रेंड ईशु उर्फ बॉबी को देने के लिए मांग की तथा यह कहते हुए शिकायतकर्ता को धमकाया गया कि अगर उसने उसकी मांग पूरी नहीं की तो उसकी महिला मित्र उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज करवा देगी और इस तरह की शिकायत में महिलाएं जो कुछ भी बताती हैं उसे पुलिस सच मानती है। शिकायतकर्ता के द्वारा यह भी कहा गया है कि उक्त घटना के बाद याचिकाकर्ताओं के द्वारा उसे उक्त पैसों की मांग को पूरा करने के लिए 25 से भी ज्यादा बार फोन किया गया तथा मांग पूरी न करने की दशा में बलात्कार के झूठे मुकदमे में फंसाने की धमकी भी दी गई।

The right to life is above the right to kill and the right to eat cow-beef can never be considered a fundamental right Allahabad High Court

FIRST INFORMATION REPORT UNDER SECTION 154 CR.PC


जिसके बाद याचिकाकर्ता और निखिल भट्ठल ने भी शिकायतकर्ता के खिलाफ मुकदमा अपराध संख्या 119/2021 दिनांक 10/04/2021 को अंतर्गत धारा 376/506 आईपीसी के तहत दर्ज करवाया।
याचिकाकर्ता के खिलाफ दर्ज उक्त मुकदमे में सह-अभियुक्त निखिल भट्ठल को दिनांक 11/04/2021 को दिल्ली पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया था जिसको माननीय उच्च न्यायालय द्वारा 22 जुलाई 2021 को जमानत पर रिहा कर दिया गया।
याचिकाकर्ता द्वारा जिला एवं सत्र न्यायाधीश नॉर्थ-वेस्ट डिस्ट्रिक्ट रोहिणी कोर्ट के न्यायालय में अग्रिम जमानत हेतु याचिका दाखिल की गई थी जिसे माननीय न्यायालय के द्वारा दिनांक 30/07/2021 को निरस्त कर दिया गया। जिसके बाद याचिकाकर्ता द्वारा माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष अग्रिम जमानत हेतु याचिका दाखिल की गई जिस पर स्टेटस रिपोर्ट मंगाने हेतु दिनांक 04/08/2021 को नोटिस जारी किया गया। स्टेटस रिपोर्ट माननीय उच्च न्यायालय के समक्ष दाखिल की जा चुकी है जिसमें साफ संकेत मिल रहे हैं कि वाॅयस रिकार्डिंग मे याचिकाकर्ता द्वारा शिकायतकर्ता से टीवी और मोबाइल फोन की अवैध मांग की गई थी तथा पूरी न होने की स्थिति में रेप के झूठे मुकदमे में फंसाने की धमकी भी दी गई थी। स्टेटस रिपोर्ट के माध्यम से माननीय उच्च न्यायालय को यह भी बताया गया कि याचिकाकर्ता का कोई भी स्थाई पता नहीं है तथा उसका फोन भी स्विच ऑफ है। स्टेटस रिपोर्ट में कहा गया है कि पुलिस तमाम कोशिशों के बावजूद भी याचिकाकर्ता को गिरफ्तार नहीं कर पाई है और वह गिरफ्तारी से बच रही है।

दलील ओर से याचिकाकर्ता द्वारा विद्वान वरिष्ठ अधिवक्ता विराज दतार:-
याचिकाकर्ता/ईशु उर्फ बाॅबी की ओर से पेश अधिवक्ता ने माननीय उच्च न्यायालय के समक्ष दलील रखते हुए कहा कि अभी तक उसकी मुवक्किल अपने लिए कानून का सहारा लेते हुए बचाव तैयार कर रही थी जिस कारण वह इन्वेस्टिगेशन ज्वाइन नहीं कर सकी और इसका यह मतलब नहीं है कि वह कानून से भाग रही थी। विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह भी तर्क दिया गया है याचिकाकर्ता द्वारा दर्ज करवाए गए मुकदमे (अंतर्गत धारा 376, आईपीसी) के संबंध में भी वह थाने पर गई थी तथा उसके बयान मजिस्ट्रेट के समक्ष अंतर्गत धारा 164 दंड प्रक्रिया संहिता,1973 के तहत दर्ज किए जा चुके हैं। उन्होंने यह भी बताया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ पुलिस द्वारा अभी तक ऐसा कोई भी प्रार्थना पत्र संबंधित न्यायालय के समक्ष प्रेषित नहीं किया गया है जिससे उसे भगोड़ा अपराधी घोषित किया जा सके।

दलील ओर से अभियोजन पक्ष द्वारा अतिरिक्त पब्लिक प्रॉसिक्यूटर (APP):-
अभियोजन पक्ष की तरफ से दलील रखते हुए विद्वान अधिवक्ता द्वारा कहां गया कि याचिकाकर्ता द्वारा अभी तक इन्वेस्टिगेशन  ज्वाइन नहीं की गई है। उन्होंने यह भी कहा कि वर्तमान मुकदमा हनी ट्रैप से संबंधित है और याचिकाकर्ता की तरफ से पेश अधिवक्ता द्वारा जो तर्क दिया गया है कि याचिकाकर्ता के बयान अंतर्गत धारा 164 सी.आर.पीसी,1973 दर्ज किए जा चुके हैं इस कथन की कोई प्रासंगिकता नही है क्योंकि बलात्कार के मुकदमे में यह प्रथम प्रक्रिया होती है। अभियोजन पक्ष द्वारा अपनी बहस में आगे यह भी कहा कि उक्त मुकदमे में विवेचना अपने प्रथम चरण में हैं और याचिकाकर्ता पर आईपीसी की धारा 328 के तहत अपराध का आरोप है जिसके लिए याचिकाकर्ता को दस साल तक की कैद की सजा हो सकती है। यह कि याचिकाकर्ता का आचरण यह दर्शाता है कि वह माननीय न्यायालय के क्षेत्राधिकार से भाग सकती है और इसलिए याचिकाकर्ता को अग्रिम जमानत प्रदान नहीं की जानी चाहिए।

न्यायालय को अग्रिम जमानत प्रदान करते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए:-
अग्रिम जमानत देने के लिए विचार करने हेतु आवश्यक मानदंड अच्छी तरह से तय हैं। न्यायालय को जमानत देते या अस्वीकार करते समय कई तथ्यों को ध्यान में रखना पड़ता है जैसे कि:-
(1) आरोप की प्रकृति और गंभीरता और अभियुक्त की सटीक भूमिका; (The  nature  and  gravity  of  the  accusation  and  the  exact role of  the accused)
(2) आवेदक का पूर्वकालिक अपराधिक इतिहास तथा क्या अभियुक्त किसी संज्ञेय अपराध के संबंध में किसी न्यायालय द्वारा दोषसिद्धि पर पहले कारावास भुगत चुका है;
(3) आवेदक के न्याय से भागने की संभावना; (The possibility  of the  applicant  to  flee from  justice)
(4) अभियुक्त के समान या अन्य अपराधों को दोहराने की संभावना; (The  possibility  of  the  accused’s  repeating  similar  or  other offences)
(5) अदालत को गवाह के साथ छेड़छाड़ की उचित आशंका या शिकायतकर्ता को धमकी की आशंका को भी ध्यान में रखना होगा; (The  court  has  also  to  take  into  account  reasonable apprehension  of  tampering  of  the  witness  or apprehension  of threat  to  the complainant)

माननीय न्यायालय के द्वारा अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई करते समय, दो बातो के बीच एक संतुलन बनाना चाहिए, जैसे कि
(क) स्वतंत्र, निष्पक्ष और पूर्ण जांच के लिए कोई पूर्वाग्रह नहीं होना चाहिए और;  (ख) अभियुक्त के उत्पीड़न, अपमान और अनुचित निरोध की रोकथाम होनी चाहिए।

अग्रिम जमानत आदेश:- माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा अग्रिम जमानत याचिका निरस्त करते हुए यह कहा गया कि
उक्त मुकदमे में चार्जशीट अभी दाखिल नहीं हुई है। याचिकाकर्ता की आवाज का नमूना लिया जाना है और जांच भी की जानी है कि क्या कोई अन्य मामले हैं जिनमें याचिकाकर्ता शामिल है और जैसा कि पहले कहा गया है कि जांच प्रारंभिक चरण में है। याचिकाकर्ता पर आईपीसी की धारा 328 के तहत अपराध का आरोप है, जो एक गंभीर अपराध है। विद्वान अभियोजक अधिकारी के तर्क में कुछ औचित्य है कि याचिकाकर्ता के आचरण से पता चलता है कि उसके न्याय से भागने की संभावना है और वह जांच में सहयोग नहीं करेगी। याचिकाकर्ता और सह-अभियुक्त निखिल भट्टल द्वारा शिकायतकर्ता को धमकी देने की इस स्तर पर संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता है। उपरोक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, इस न्यायालय को लगता है कि यह एक उपयुक्त मामला नहीं है जहां याचिकाकर्ता को गिरफ्तारी की स्थिति में जमानत दी जानी चाहिए। अतः यह अग्रिम जमानत याचिका निरस्त की जाती है।
जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद
माननीय उच्च न्यायालय, दिल्ली
आदेश दिनांक:- 16 अगस्त 2021


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