The Fundamental Rights Of An Individual Can Not Be Defeated Other Than In Accordance With Law: Karnataka High Court Grants Default Bail-In Case Of UAPA Bengaluru Riots Case

 

The Fundamental Rights Of An Individual Can Not Be Defeated Other Than In Accordance With Law: Karnataka High Court Grants Default Bail-In Case Of UAPA Bengaluru Riots Case


कर्नाटक हाईकोर्ट ने 11 अगस्त 2020 को थाना DJ Halli & KG Halli क्षेत्र, बेंगलुरु में हुए दंगों में आरोपित 115 अभियुक्तों को दंड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 167(2) का लाभ देते हुए जमानत के आदेश जारी कर दिए।

Karnataka High Court

              Brief Facts Of The Case:


याचीगणों पर कथित रूप से आरोप है कि उन्होंने सांप्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ने के लिए फेसबुक पर एक आपत्तिजनक पोस्ट डाली थी। याचीगण एक विशेष संप्रदाय से ताल्लुक रखते हैं और एक एमएलए के परिचित भी हैं। अभियुक्त मुजम्मिल पाशा और उसके अन्य साथियों को दिनांक 12 नवंबर 2020 को अन्तर्गत धारा 15/16/18/20 प्रिवेंशन ऑफ अनलॉफुल एक्टिविटीज 1967 और 143/147/148/149/332/333/353/427/436 भारतीय दंड संहिता, 1860 और प्रीवेंशन ऑफ डैमेज टू पब्लिक प्रॉपर्टी, 1984 की धारा 4 में मुकदमा पंजीकृत कर गिरफ्तार कर लिया गया था और उसी दिन मजिस्ट्रेट द्वारा उन्हें पुलिस कस्टडी(रिमांड) में भेज दिया गया।

विवेचना के दौरान कुल 115 लोगों को गिरफ्तार किया गया।

दिल्ली कोर्ट ने छत्रसाल मर्डर केस में आरोपी ओलंपियन सुशील कुमार की जुडिशल कस्टडी को 25 जून तक के लिए बढ़ा दिया।
उपरोक्त मामले की जांच कर रही राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) द्वारा 90 दिनों की निर्धारित वैधानिक अवधि में विवेचना पूरी न हो पाने के कारण प्रिवेंशन ऑफ अनलॉफुल एक्टिविटीज, 1967 की धारा 43 डी(2)बी का हवाला देते हुए निचली अदालत से चार्ज शीट जमा करने हेतु दिनांक 3 नवंबर 2020 को माननीय न्यायालय में प्रार्थना पत्र दाखिल कर 90 दिन का और समय मांगा गया। जिसे माननीय न्यायालय ने स्वीकार करते हुए उसी दिन जांच एजेंसी को चार्जशीट जमा करने हेतु 90 दिनों का और समय दे दिया।
इसके बाद याची गणों के द्वारा दिनांक 11 नवंबर 2020 को जांच एजेंसी द्वारा 90 दिनों की वैधानिक अवधि के भीतर चार्जशीट माननीय न्यायालय के समक्ष दाखिल न कर पाने के कारण दंड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 167(2) के अंतर्गत डिफ़ॉल्ट जमानत का लाभ लेने हेतु प्रार्थना पत्र दाखिल किया गया, जिसे ट्रायल कोर्ट द्वारा दिनांक 05/01/2021 को यह कहते हुए
निरस्त कर दिया कि इस न्यायालय में अभियोजन पक्ष के द्वारा प्रिवेंशन ऑफ अनलॉफुल एक्टिविटीज, 1967 की धारा 43 डी(2)बी के अंतर्गत इन्वेस्टिगेशन की अवधि (90 दिन) बढ़ाने के लिए प्रार्थना पत्र दिया गया था, जिसे इस न्यायालय ने स्वीकार कर लिया। इसलिए याचीगण दंड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 167(2) के तहत डिफ़ॉल्ट जमानत के अधिकारी नही हैं।
जिस कारण याची गणों ने माननीय उच्च न्यायालय कर्नाटक के समक्ष एक रिट पिटिशन दाखिल की।

यहां माननीय न्यायालय के समक्ष कानून के दो प्रश्न उठते हैं :-
(1). ट्रायल कोर्ट के द्वारा चार्जशीट दाखिल करने की अवधि को 90 दिनों के लिए बढाये जाने का आदेश पारित करना विधि के अनुसार सही और विधिक रूप से टिकाऊ है?
(2). क्या याचीगण दंड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 167(2) के अंतर्गत दी गई वैधानिक जमानत/डिफ़ॉल्ट जमानत के हकदार है?

Heinous and serious offences such as murder, rape and dacoity cannot be quashed on the ground of Settlement

Observations of the Court
माननीय कर्नाटक उच्च न्यायालय ने इस मामले में यह अवधारित किया कि माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा हितेंद्र ठाकुर और संजय दत्त के मामले में दिए गए दिशा-निर्देश वर्तमान केस पर भी लागू होते हैं। न्यायालय ने आगे कहा कि याचीगण न तो उस समय निचली अदालत में मौजूद थे जब अभियोजन पक्ष द्वारा विवेचना हेतु समय को बढ़ाए जाने के लिए आवेदन पत्र न्यायालय में दाखिल किया था और न ही आदेश पारित करने से पहले ट्रायल कोर्ट द्वारा याचीगण को अपना पक्ष रखने का मौका दिया गया। मेरा यह मानना है कि ट्रायल कोर्ट द्वारा अभियोजन पक्ष के प्रार्थना पत्र को स्वीकार कर विवेचना हेतु समय बढाये जाने का आदेश विधिक रुप से सही नहीं है। माननीय सुप्रीम कोर्ट ने बिक्रमजीत सिंह के केस में यह अवधारित किया कि अब वैधानिक जमानत/डिफ़ॉल्ट जमानत के अधिकार को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21(मौलिक अधिकार) के रूप प्राथमिकता दी जाएगी। अनुच्छेद 21, जोकि व्यक्तिगत आजादी और जीवन का अधिकार की गारंटी देता है। इसे हमारे संविधान का पवित्र अंग समझना चाहिए। यह राज्य का दायित्व है कि वह निष्पक्ष न्यायसंगत और उचित प्रक्रिया का इस्तेमाल करे और संविधान के अनुच्छेद 21 में दिए गए अधिकारों से वंचित ना करें।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में दिए गए मौलिक अधिकारों से किसी भी व्यक्ति को वंचित नहीं किया जा सकता, जब तक कि ऐसा करना कानून के अनुसार उचित ना हो। उच्च न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट के निर्णय पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि ट्रायल कोर्ट द्वारा अभियोजन पक्ष की विवेचना हेतु और अधिक समय बढ़ाए जाने की मांग को स्वीकार कर आदेश पारित करना न्याय की दृष्टि में गलत है। दंड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 167(2) में वैधानिक अधिकार दिए गए हैं। न्यायालय ने अपने आदेश में कहां कि यदि 90 दिनों के अंदर विवेचना पूरी नहीं होती और अभियोजन पक्ष द्वारा चार्जशीट कोर्ट में जमा नहीं की जाती तो अभियुक्त को तुरंत जमानत याचिका डिफॉल्ट बेल न्यायालय में लगानी चाहिए और जिसे देने से न्यायालय इनकार नहीं कर सकता। न्यायालय ने यह भी कहा कि याचिगण के द्वारा दंड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 167(2) का लाभ लेने हेतु जो जमानत याचिका संबंधित कोर्ट में लगाई गई थी उसे स्वीकार किया जाना आवश्यक था।

आखिर ड्रग कंट्रोलर ने माना कि गौतम गंभीर फाउंडेशन ने ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट के तहत अपराध किया है; दिल्ली हाईकोर्ट ने गौतम गंभीर फाउंडेशन के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश दिए हैं।

Order of The Karnataka High Court
उपरोक्त मामले में ट्रायल कोर्ट के द्वारा जारी किए गए आदेश क्रमशः अभियोजन पक्ष को विवेचना हेतु 90 दिनो का अधिक समय दिया जाना और याचीगणों के द्वारा दंड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 167(2) का लाभ लेने हेतु दाखिल किए गए डिफ़ॉल्ट जमानत प्रार्थना पत्र को खारिज करना, माननीय उच्च न्यायालय ने दोनो आदेशों को निरस्त कर दिया।
इसके साथ ही याचीगण की डिफ़ॉल्ट जमानत याचिका अन्तर्गत धारा 167(2) Cr. P.C. को स्वीकार कर याचीगण को दो लाख रूपए की दो जमानत व समान धनराशि का निजी बन्ध पत्र तथा जमानत से संबंधित दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 मे दी गई शर्तें लगाई गई है जो कि इस प्रकार है :-


(1). यह कि याचिगण ट्रायल कोर्ट के समक्ष प्रत्येक सुनवाई पर हाजिर होंगे, जब तक कि ट्रायल कोर्ट किसी वैध कारण के उन्हें उनकी उपस्थिति से छूट प्रदान न कर दे।

(2). यह कि याचिगण दौरान जमानत अभियोजन पक्ष के गवाहो को अभित्रस्त अथवा धमकाएगा नही और न ही साक्ष्यों से छेडछाड करेगा।
(3). यह कि याचिगण जमानत की अवधि में समान प्रकृति के अपराध की पुनरावृति नहीं करेगें।
(4). यह कि याचिगण दौरान विचारण न्यायालय के क्षेत्राधिकार से बिना न्यायालय की पूर्व अनुमति लिए बाहर नहीं जाएंगे।
(5). यह कि याचिगण दौरान विचारण जांच में पूर्ण सहयोग करेंगे और विवेचना अधिकारी के बुलाने पर उसके समक्ष हाजिर होंगे।

Filing common chargesheet in multiple crimes is impermissible: Karnataka High Court

Dated: 10/06/2021
Author: Advocate Mohit Bhati

Read 📚 Full Judgment:


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