यह एक से सुस्थापित विधि है कि बयान अंतर्गत धारा 164 दंड प्रक्रिया संहिता साक्ष्य की श्रेणी में नहीं आता।
माननीय अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश/ विशेष न्यायाधीश लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम 2012 (प्रथम) गौतम बुध नगर श्री निरंजन कुमार के द्वारा अभियुक्त शोएब खान को आरोप अंतर्गत धारा 363/366/376/328 भारतीय दंड संहिता व धारा 3/4 लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम 2012 के अपराध से दोषमुक्त करते हुए कहा कि न्याय का सिद्धांत यह है कि अपराधी को उसके द्वारा किए गए अपराध के लिए दंडित किया जाना आवश्यक है किंतु इसका दूसरा पहलू यह भी है कि किसी निर्दोष व्यक्ति को भी सजा न हो सके, इसके लिए यह आवश्यक है कि अभियोजन पक्ष को अकाट्य साक्ष्य(ठोस सबूत) द्वारा घटना को साबित करना होगा। अपराध को साबित करने की जिम्मेदारी अभियोजन पक्ष की ही होती है।
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Factual background (तथ्यात्मक पृष्ठभूमि):
वादिनी मुकदमा की पुत्री (पीड़िता) उम्र लगभग 14 वर्ष को उसके पड़ोस में रहने वाला शोएब खान पुत्र कयूम खान बहला-फुसलाकर भगा ले गया था। जिसके संबंध में मुकदमा अपराध संख्या 1250/2019 अंतर्गत धारा 363/366 भारतीय दंड संहिता, थाना – बिसरख, जिला – गौतम बुध नगर में अभियुक्त के विरुद्ध पंजीकृत किया गया। विवेचना अधिकारी द्वारा दौरान विवेचना अभियुक्त के विरुद्ध पर्याप्त साक्ष्य पाए जाने पर भारतीय दंड संहिता की धारा 363/366/376/328 एवं 3/4 पाॅक्सो अधिनियम 2012 एवं 3(2) (VA) SC/ST Act के अंतर्गत माननीय न्यायालय के समक्ष आरोप पत्र दाखिल किया गया। जिसका संज्ञान न्यायालय द्वारा लिया गया तथा दिनांक 18/01/2021 को अभियुक्त के विरुद्ध पर्याप्त साक्ष्य होने के कारण केवल भारतीय दंड संहिता की धारा 363/366/376/328 एवं 3/4 पाॅक्सो अधिनियम 2012 के अंतर्गत अपराध होना सृजित किया गया।
अभियुक्त की तरफ से विद्वान अधिवक्ता अमित भाटी एवं मोहित भाटी (बिसरख) ने माननीय न्यायालय के समक्ष अपने-अपने तर्क प्रस्तुत किए।
बचाव पक्ष के विद्वान अधिवक्ता अमित भाटी (बिसरख) ने माननीय न्यायालय के समक्ष अपना पक्ष प्रस्तुत करते हुए कहा कि प्रथम सूचना रिपोर्ट गलत तथ्यों के आधार पर पंजीकृत कराई गई है जिसमें किंचित मात्र भी सत्यता नहीं है। अभियोजन पक्ष के द्वारा माननीय न्यायालय के समक्ष ऐसा कोई भी साक्ष्य या गवाह पेश नहीं किया गया है जिससे कि अभियुक्त का दोषी होना पाया जाता हो। केवल पीड़िता के बयान अंतर्गत धारा 164 दंड प्रक्रिया संहिता के आधार पर अभियुक्त को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। अतः अभियुक्त दोष मुक्त किए जाने योग्य है।
बचाव पक्ष के विद्वान अधिवक्ता मोहित भाटी (बिसरख) द्वारा माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा स्थापित स्वर्णिम विधि व्यवस्था भानु प्रताप गंगवार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य 2007 (59) ए.सी.सी. 721 में विश्वास प्रकट करते हुए कहा कि धारा 164 दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत दिया गया ब्यान संबंधित मजिस्ट्रेट द्वारा लिखित स्वतंत्र एवं ठोस आधार वाला साक्ष्य नहीं है। विचारण न्यायालय के समक्ष उक्त बयान की पुष्टि ना होने पर वह विश्वास योग्य नहीं है।
विद्वान अधिवक्ता द्वारा अपने तर्क प्रस्तुत करते हुए आगे कहा गया कि यह सुस्थापित विधि है कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के अंतर्गत दिया गया बयान साक्ष्य की श्रेणी में नहीं आता। यह केवल एक कथन के सिवाय और कुछ भी नहीं है और ना ही इस आधार पर अभियुक्त को दोषी ठहराया जा सकता है।
विशेष अभियोजक द्वारा अपना तर्क प्रस्तुत करते हुए कहा कि अभियुक्त को उक्त मामले में दंडित किए जाने हेतु पत्रावली पर पर्याप्त साक्ष्य मौजूद हैं। पीड़िता द्वारा सम्बन्धित मजिस्ट्रेट के समक्ष दिए गए ब्यान अंतर्गत धारा 164 दंड प्रक्रिया संहिता में स्पष्ट रूप से अभियुक्त का नाम वर्णित किया गया है। यह भी तर्क प्रस्तुत किया गया की पत्रावली पर इतना साक्ष्य विद्यमान है जिससे कि अभियुक्त को दोष- दंडित किया जा सकता है।
विनिश्चय बिन्दु (मूल प्रश्न):
[ ] (A) क्या दिनांक 28/11/2019 को पीड़िता उम्र14 वर्ष को उसकी विधिक संरक्षकता से बहला-फुसलाकर व्यपह्रत कर ले जाकर उसके साथ बलात्कार किया गया? क्या यह अपराध अभियुक्त द्वारा ही किया गया?
[ ] (B) क्या अभियुक्त शोएब खान द्वारा वादिनी की पुत्री (पीड़िता) के साथ भारतीय दंड संहिता की धारा 363/366/376/328 एवं 3/4 पाॅक्सो अधिनियम 2012 के अंतर्गत कारित अपराध विधि अनुसार साबित है?
न्यायालय का अवलोकन (Observation of the Court):
माननीय न्यायालय ने उक्त मामले में यह माना कि पत्रावली पर पूर्णत: साक्ष्याभाव है। अभियोजन पक्ष अपना केस आधारभूत रूप से साबित करने में असफल रहा। आधारभूत रूप से प्रकरण साबित न होने की दशा में धारा – 29 पोक्सो अधिनियम के उपबंध आकर्षित नहीं होंगे, अर्थात अभियुक्त के विरुद्ध अपराध कारित किए जाने की उपधारणा का प्रश्न ही उत्पन्न नहीं होता। माननीय न्यायालय ने अपने आदेश में यह भी कहा कि अभियोजन पक्ष अपना प्राथमिक दायित्व निर्वहन करने में विफल रहा। अर्थात अभियुक्त के विरुद्ध आधारभूत रूप से प्रकरण को प्रमाणित नहीं कर सका।
अतः अभियुक्त शोएब खान उक्त धाराओं के अपराध के आरोप से प्रस्तुत साक्ष्यों के संदेहास्पद पाए जाने की दशा में संदेह का लाभ पाते हुए दोष मुक्त किए जाने योग्य है।
[ ] आदेश
अभियुक्त शोएब खान को भारतीय दंड संहिता की धारा 363/366/376/328 एवं 3/4 पाॅक्सो अधिनियम 2012 के अपराध से दोषमुक्त किया जाता है।
आदेश दिनांक:- 16/09/2021