वैधानिक अवधि में हुए अवकाश भी धारा 167(2) के तहत डिफॉल्ट जमानत में गिने जाएंगे – छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट
छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने यह कहते हुए जमानत याचिका स्वीकृत की, कि अगर 60 दिन के अंदर कोई भी वैधानिक अवकाश होता है तो वह भी दंड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 167(2) डिफॉल्ट जमानत में गिना जाएगा और मुकदमे निरुद्ध अभियुक्त की 60 दिन के अंदर चार्जशीट ना फाइल होने पर जमानत प्रदान की जाएगी।
प्रार्थी की ओर से एडवोकेट शैलेंद्र द्विवेदी ने कोर्ट को बताया कि याची की डिफॉल्ट जमानत ट्रायल कोर्ट द्वारा निरस्त कर दी गई थी। दिनांक 12/04/2021 अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश/विशेष न्यायालय एनडीपीएस ने अपने आदेश में कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 167 उपधारा 2 के अंतर्गत चार्जशीट दाखिल हो चुकी थी।
अभियुक्तगणों के द्वारा माननीय न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत तथ्य (The Facts Presented By The Petitioners Before The Hon’ble High Court):-
प्रार्थीगण को धारा 22 (B) एनडीपीएस एक्ट 1985 के अंतर्गत गिरफ्तार किया गया था। उन्हें 9 फरवरी 2021 को गिरफ्तार किया गया था तथा 10/02/2021 को रिमांड में भेजा गया था। प्रार्थी के एडवोकेट ने कोर्ट को बताया कि 10 अप्रैल 2021 तक चार्टशीट नही फाइल की गई। 12 अप्रैल 2021 को प्रार्थी के एडवोकेट द्वारा दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 167 (2) के अंतर्गत डिफॉल्ट जमानत के लिए कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। जिसमें कोर्ट ने यह कहते हुए जमानत याचिका खारिज कर दी कि 60 दिन के अंदर चार्टशीट फाइल की जा चुकी है। निचली अदालत ने जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा कि 10 अप्रैल व 11 अप्रैल को वैधानिक अवकाश होने के चलते 60 दिन के अंदर चालान दाखिल कर दिया गया था। जिसकी वजह से अभियुक्त की डिफॉल्ट जमानत याचिका रद्द की जाती है। सेशन कोर्ट/स्पेशल न्यायालय के आदेशों को हाई कोर्ट में यह कहते हुए चैलेंज किया गया कि संबंधित मुकदमे में चार्जशीट 60 दिन के अंदर नहीं फाइल की गई थी।
प्रार्थी के एडवोकेट ने कोर्ट को बताया कि प्रार्थी को डिफॉल्ट जमानत प्रदान की जाए। जिसका प्रथम कारण यह है कि 60 दिन के अंदर चार्जशीट फाइल ना होने के कारण भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन का अधिकार जिसमें बताया गया है कि प्रत्येक व्यक्ति को हर प्रकार से पूरे जीवन में आजादी से रहने का अधिकार है। इसलिए याची जमानत का हकदार है। जस्टिस नरेंद्र कुमार व्यास की बेंच ने बताया की प्रार्थी/अभियुक्त को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 167 (2) के तहत जमानत का अधिकार प्राप्त है।
Gregorian Calender will be as below:
Feb, 2021(from 11.02.2021):-18दिन
March, 2021 :- 31 दिन
April, 2021 :- 12
Total ———61 days.
इस प्रकार माननीय उच्च न्यायालय ने यह माना कि विवेचना अधिकारी द्वारा निचली अदालत के समक्ष चार्जशीट 61 वे दिन प्रेषित की गई थी।
Heinous crimes such as under 376 IPC, can not be compounded or proceedings, can not be quashed merely because the prosecutrix decides to marry the accused: Allahabad High Court
सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट M. Ravindran vs. Intelligence Officer, Directorate of Revenue Intelligence का हवाला देते हुए उच्च न्यायालय ने बताया कि इसमें बताया गया है कि अनुच्छेद 21 मे दिए गए प्रावधानो पर हर नागरिक का अधिकार है।
जिसके कारण प्रार्थी/अभियुक्त को धारा 167(2) का लाभ देते हुए डिफॉल्ट जमानत पर छोडे जाने के पर्याप्त आधार है। प्रार्थी के एडवोकेट शैलेंद्र दुबे ने बताया की प्रार्थी को धारा 22 B के तहत एनडीपीएस एक्ट 1984 में गिरफ्तार किया गया था, जिसकी सजा की अवधि 10 साल से कम है। जिसके कारण प्रार्थी दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 167(2) के आधार पर डिफॉल्ट जमानत पाने के लिए हकदार हैं। अभियुक्त की ओर से बहस कर रहे अधिवक्ता द्वारा कोर्ट को बताया कि प्रार्थी के पास से जो भी समान बरामद हुए हैं वह सब मिनिमम क्वांटिटी में उपलब्ध है ना कि कमर्शियल क्वांटिटी में है। प्रार्थी के एडवोकेट ने अपनी बहस में आगे कहा कि धारा 167(2) में दिया गया है कि अगर अपराध की श्रेणी 10 वर्ष से कम है तो वह डिफॉल्ट जमानत ले सकता है। जिसमें 60 दिन के अंदर चार्जशीट फाइल ना की गई हो।
Rakesh Kumar Paul vs. The State of Assam में निर्धारित किया गया है कि दण्ड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 167(2) (ए) (i) केवल उन मामलों में लागू होती है जहां आरोपी पर (i) मौत की सजा या किसी भी निचली सजा के साथ आरोप लगाया जाता है; (ii) आजीवन कारावास और किसी भी निचली सजा के साथ दंडनीय अपराध और (iii) न्यूनतम 10 साल की सजा के साथ दंडनीय अपराध। ऐसे सभी मामलों में जहां न्यूनतम सजा 10 साल से कम है लेकिन अधिकतम सजा मौत या आजीवन कारावास नहीं है, तो धारा 167(2) (ए) (ii) लागू होगी और आरोपी बाद में ‘डिफ़ॉल्ट जमानत’ देने का हकदार होगा।
उच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि सरकारी अवकाश को भी जोड़ा जाएगा अगर वह 60 दिन के भीतर आते हैं तो। कोर्ट ने प्रार्थी कि तरफ से पेश की गई सभी दलीलों को ध्यानपूर्वक सुनते हुए यह आदेश दिया कि चार्जशीट फाइल होने में 61 दिन लगे हैं। जिनके चलते प्रार्थी डिफॉल्ट जमानत का हकदार है।
प्रार्थी के अधिवक्ता द्वारा माननीय न्यायालय को बताया गया कि केवल एनडीपीएस की धारा 19, 24, 27, 36 मे डिफॉल्ट जमानत प्रदान नही की जा सकती। लेकिन मेरे क्लाइंट पर पुलिस के द्वारा जो आरोप लगाया गया है वह धारा 23 बी के अंतर्गत अपराध की श्रेणी में आता है। जिसमें यह दर्शाया गया है कि जो मात्रा उसके पास से बरामद हुई है वह कमर्शियल क्वांटिटी की श्रेणी में नहीं आती। जिसके कारण याची जमानत पर छोडे जाने का हकदार है।
उच्च न्यायालय की पीठ ने सारी दलीले सुनते हुए यह कहा कि प्रार्थी डिफॉल्ट जमानत का हकदार है। कोर्ट ने कहा सारी बातें एकदम स्वच्छ व खुली हुई है। जिनको देखकर यह पता चलता है कि प्रार्थी को जमानत प्रदान करनी चाहिए। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए प्रार्थी को जमानत प्रदान की साथ ही साथ बताया कि सरकारी अवकाश वा वैधानिक अवकाश को भी विवेचना की अवधि में गिना जाएगा।
याची को किस अपराध के लिए गिरफ्तार किया गया (For which offense the petitioner was arrested):- प्रॉसीक्यूशन द्वारा याची संख्या एक पर आरोप लगाया गया कि उसके कब्जे से Spasmo Proxy von Plus की 145 Strips व 1160 कैप्सूल और याची संख्या दो के कब्जे से 90 Strips व Spasmo Proxy von Plus के कुल 720 कैप्सूल बरामद हुए। याचीगणों का यह अपराध NDPS ACT 1985 की धारा 22(B) के अंतर्गत अपराध की श्रेणी में आता है। अभियुक्तगणों से बरामद की गई सामग्री को पुलिस द्वारा सीज कर दिया गया। प्रॉसीक्यूशन द्वारा माननीय न्यायालय को यह भी बताया गया कि अभियुक्तगणों से बरामद किया गया ड्रग्स विधि द्वारा निर्धारित की गई न्यूनतम मात्रा से अधिक है लेकिन कमर्शियल क्वांटिटी से कम है।
डिफॉल्ट जमानत के प्रावधान दंड प्रक्रिया संहिता 1973 में कहां पर दिए गए हैं?
डिफॉल्ट जमानत के प्रावधान दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 167 उपधारा 2 में दिए गए है जोकि इस प्रकार है:-
“Section 167(2) in The Code Of Criminal Procedure, 1973
(2) The Magistrate to whom an accused person is forwarded under this section may, whether he has or has not jurisdiction to try the case, from time to time, authorise the detention of the accused in such custody as such Magistrate thinks fit, for a term not exceeding fifteen days in the whole; and if he has no jurisdiction to try the case or commit it for trial, and considers further detention unnecessary, he may order the accused to be forwarded to a Magistrate having such jurisdiction: Provided that-
(a) the Magistrate may authorize the detention of the accused person, otherwise than in the custody of the police, beyond the period of fifteen days; if he is satisfied that adequate grounds exist for doing so, but no Magistrate shall authorize the detention of the accused person in custody under this paragraph for a total period exceeding
(i) Ninety days, where the investigation relates to an offence punishable with death, imprisonment for life or imprisonment for a term of not less than ten years;
(ii) Sixty days, where the investigation relates to any other offence, and, on the expiry of the said period of ninety days, or sixty days, as the case may be, the accused person shall be released on bail if he is prepared to and does furnish bail, and every person released on bail under this sub- section shall be deemed to be so released under the provisions of Chapter XXXIII for the purposes of that Chapter; (b) No Magistrate shall authorize detention in any custody under this section unless the accused is produced before him;
(c) No Magistrate of the second class, not specially empowered in this behalf by the High Court, shall authorise detention in the custody of the police.”
In Gulshan Kumar murder case, Mumbai High Court convicted Abdul Rashid Dawood Merchant and sentenced him for life imprisonment
Section 36A in The Narcotic Drugs and Psychotropic Substances Act, 1985
Section 36A.Offences triable by Special Courts (1) Notwithstanding anything contained in the Code of Criminal Procedure, 1973 (2 of 1974),— (a) all offences under this Act which are punishable with imprisonment for a term of more than three years shall be triable only by the Special Court constituted for the area in which the offence has been committed or where there are more Special Courts than one for such area, by such one of them as may be specified in this behalf by the Government;
Law of Crimes – Multiple Choice Questions
दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 में किसी बात के होते हुए भी-
(1) एनडीपीएस एक्ट, 1985 के अंतर्गत आने वाले सभी अपराध जिनमें 3 साल से अधिक सजा का प्रावधान है उन सभी मामलों का ट्रायल विशेष न्यायालय के द्वारा ही किया जाएगा। जिस स्थान पर एक से अधिक विशेष न्यायालयो का गठन किया गया है वहां पर ऐसे अपराध का ट्रायल उस विशेष न्यायालय द्वारा किया जाएगा, जो कि राज्य सरकार निर्धारित करें।
दिनांक:- 24/07/2021
लेखक:- सुभांशु त्रिपाठी(BA.LL.B 4th Year) NIIMT College