J&K फास्ट ट्रैक कोर्ट ने एक जज को बलात्कार और धोखाधड़ी के मामले में दोषी पाते हुए 10 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई
जम्मू कश्मीर की फास्ट ट्रैक कोर्ट ने एक निलंबित जज को बलात्कार और ठगी (Cheating) के मामले में दोषी करार देते हुए धारा 420 रणबीर पीनल कोड के अंतर्गत 7 साल के साधारण कारावास एवं ₹20000 का जुर्माना तथा धारा 376 उप धारा दो (K) के अंतर्गत 10 साल का कठोर कारावास एवं ₹50000 की सजा सुनाई तथा जुर्माना न अदा किए जाने की स्थिति में अभियुक्त को प्रत्येक अपराध के लिए 3 महीने अतिरिक्त कारावास की सजा सुनाई गई।
Brief Facts Of The Case (मामले के संक्षिप्त तथ्य) :- FIR NO 06/2018, P/S Janipur, Jammu U/S 420/376-(2) K RPC
अभियोजन पक्ष की कहानी कुछ इस प्रकार है कि शिकायतकर्ता ने दिनांक 12 जनवरी 2018 को जानीपुर पुलिस स्टेशन,(जम्मू) पर एक लिखित शिकायत दी, जिसमें प्रार्थिनी द्वारा बताया गया कि वह जिला रामबन की रहने वाली है और वर्तमान में नागरोटा टोल पोस्ट,जम्मू पर अपनी नाबालिग बेटी के साथ रहती है। एक केस के सिलसिले में ज्योति नाम की महिला ने उसकी मुलाकात अभियुक्त (जज) से करवाई और उसका परिचय कराया। ज्योति पर भरोसा कर, अभियुक्त से कानूनी सहायता लेने के लिए उसने अभियुक्त से मुलाकात की। अभियुक्त ने उसे कानूनी सहायता प्रदान किए जाने का आश्वासन दिया और उसे घरेलू कामकाज के लिए भी रख लिया। पीड़िता ने अपनी बच्ची की बेहतर शिक्षा और कानूनी सहायता के आश्वासन पर अभियुक्त के घर में कामकाज करना शुरू कर दिया। अभियुक्त ने उसे ₹5000 प्रति माह देने का वादा भी किया।
जिसके बाद पीड़िता ने एक लिखित शिकायत एसएसपी महोदय को दी। अब चूंकि यह शिकायत जुडिशल ऑफिसर के खिलाफ थी तो इसके लिए संबंधित हाईकोर्ट से परमिशन लेने की आवश्यकता थी, इसलिए एसएसपी महोदय द्वारा उक्त मामले के संबंध में माननीय जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय के रजिस्टार जनरल से बात की गई। जहां से पुलिस को कानून के अंतर्गत उचित कार्रवाई करने के निर्देश जारी किए गए।
Hon’ble Khalil Chaudhary |
जम्मू कश्मीर के जज को सुनाई गई कैद Order of Sentence (दण्डादेश)
जम्मू कश्मीर की फास्ट ट्रैक कोर्ट ने आरोपी निलंबित जज को अन्तर्गत धारा 420/376-(2) K रणबीर पीनल कोड बलात्कार और ठगी (Cheating) के मामले में दोषी करार दिया।
[ 1 ] माननीय न्यायालय के समक्ष बहस के दौरान विद्वान सहायक लोक अभियोजक (Mr.Suresh Sharma) ने कहा कि अभियुक्त ने पीड़िता का जीवन बर्बाद कर दिया है अभियुक्त को अंतर्गत धारा 420/376-(2) K रणबीर पीनल कोड मे दी गई अधिकतम सजा से दण्डित किया जाना आवश्यक है। इसके साथ ही आरोपी पर भारी जुर्माना लगाया जाना भी आवश्यक है।
[ 2 ] वहीं दूसरी ओर से बचाव पक्ष के विद्वान अधिवक्ता प्रिंस खन्ना द्वारा माननीय न्यायालय के समक्ष बहस के दौरान यह तर्क रखा गया कि आरोपी एक न्यायिक अधिकारी है, पूर्व मे उसकी कोई भी आपराधिक पृष्ठ भूमि नही रही। आरोपी को पहले ही जेल में अपनी कैद के कारण बहुत कुछ भुगतना पड़ा है। इसलिए इन सब बातों का ख्याल रखते हुए मामले में नरमी बरतने की प्रार्थना की है।
[ 3] माननीय न्यायालय के द्वारा अपने आदेश में कहा गया कि मैंने वर्तमान मामले में शामिल तथ्यो और परिस्थितियों पर अपने विचार रखे हैं। इसके अलावा, मैने अभियोजन पक्ष और बचाव पक्ष के तर्कों को भी ध्यान पूर्वक सुना। मैंने उक्त मामले में लागू होने वाले कानून के प्रासंगिक प्राविधानो का भी अध्ययन किया।
[4] माननीय न्यायालय द्वारा अपने आदेश में आगे कहा गया कि न केवल अपराध को ध्यान में रखते हुए बल्कि अपराधी पर भी विचार करते हुए यह केवल न्यायालय का कर्तव्य ही नहीं है बल्कि कानून के अनुसार पर्याप्त सजा देने के लिए सामाजिक और विधिक दायित्व स्पष्ट रूप से तय किया गया है। इसके अलावा, निरोध और सुधार मुख्य रूप से सामाजिक लक्ष्य हैं। अभियुक्त के लिए पर्याप्त सजा निर्धारित करना न्यायालय का कर्तव्य है। समाज की सुरक्षा भी अपेक्षित सजा के उद्देश्यों में से एक है। समाज मे बुराई को कम करने के लिए सजा देना एक तरीके से यह हमारा उस समाज के प्रति दायित्व है जिसने देश की न्यायिक प्रणाली मे विश्वास और आस्था व्यक्त की। यह अदालत की जिम्मेदारी है कि वह खुद को इसकी भूमिका और कानून के शासन के प्रति सम्मान के बारे में याद दिलाए। न्यायालय को तर्कसंगत न्यायिक विवेक को प्रकट करना चाहिए न कि व्यक्तिगत धारणा या नैतिक प्रवृत्ति को। लेकिन, अगर किसी अंतिम स्थिति में उचित सजा नहीं दी जाती है, तो सजा का मूल उद्देश्य पूरा नही होता,कानून इसे बर्दाश्त नहीं कर सकता। पुरानी कहावत “कानून किसी के अतीत का शिकार करता है, उसे अभद्र तरीके से और दया के इंद्रधनुष में दफनाने की अनुमति नहीं दी जा सकती है,
[ 5] उपरोक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए माननीय न्यायालय द्वारा आरोपी को धारा 420 रणबीर पीनल कोड के अंतर्गत 7 साल के साधारण कारावास एवं ₹20000 का जुर्माना तथा धारा 376 उप धारा दो (K) के अंतर्गत 10 साल का कठोर कारावास एवं ₹50000 की सजा सुनाई तथा जुर्माना न अदा किए जाने की स्थिति में अभियुक्त को प्रत्येक अपराध के लिए 3 महीने अतिरिक्त कारावास की सजा सुनाई गई। माननीय न्यायालय द्वारा अपने आदेश में यह भी कहा गया कि विवेचना और विचारण (ट्रायल) के दौरान अभियुक्त के द्वारा जेल में बिताई गई अवधि को भी उक्त सजा में ही समाहित किया जाए। दोनों सजा साथ साथ चलेंगी। इस आदेश की प्रति दोषी को एक बार नि:शुल्क उपलब्ध कराई जाए। कार्यालय सजा के इस आदेश का कड़ाई से अनुपालन करते हुए कारावास का वारंट जारी करेगा और उसे अनुपालन के लिए अधीक्षक केंद्रीय जेल कोट भलवाल जम्मू को भेजेगा। यह आदेश निर्णय का हिस्सा होगा और मुख्य फाइल के रिकॉर्ड पर रखा जाएगा जिसे उचित अनुपालन के बाद रिकॉर्ड करने के लिए भेजा जाएगा।
Uttar Pradesh police can not arrest Twitter India’s MD Manish Maheshwari: Karnataka High Court
(खलील चौधरी)
पीठासीन अधिकारी
फास्ट ट्रैक कोर्ट जम्मू
आदेश दिनांक:- 23/10/2021