माननीय उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि इस प्रकार के अपराध व्यक्तिगत न होकर पूरे समाज के खिलाफ होते है। जिनसे समाज मे गलत सन्देश जाता है।
Bombay High Court
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[ 1 ] Brief Facts Of The Case:
याचीगण जिस सोसाइटी में रहते हैं उसी में प्रतिवादी संख्या दो (वादी एफ आई आर) सफाई कर्मी के रूप में काम करता है। उसके द्वारा प्रथम सूचना रिपोर्ट (274/2018) दिनांक 6 सितंबर 2018 को चेंबूर पुलिस स्टेशन, ग्रेटर मुंबई में निम्नलिखित धाराओ के अंतर्गत दर्ज करवाई:- धारा 370/34 IPC,
और 75/79/23 जुवेनाइल जस्टिस (Care & Protection of Children) एक्ट 2015. जिसमें विवेचना पूरी हो जाने के बाद विवेचना अधिकारी द्वारा दिनांक 16 फरवरी 2019 को सत्र न्यायालय में चार्जशीट दाखिल कर दी गई जोकि सत्र न्यायालय ग्रेटर बॉम्बे, मुंबई के समक्ष विचाराधीन है।
प्रथम शिकायतकर्ता के द्वारा यह आरोप लगाया गया कि वह और उसकी पत्नी हरी कुंज सोसाइटी में पिछले लगभग 10 वर्षों से सफाई का काम करते हैं। एफ. आई.आर दर्ज कराने से लगभग 1 महीने पहले से वह यह बात नोटिस कर रहा था कि 1 महीने से एक 10 साल की बच्ची याचीगण के घर में रह रही है। उसने यह भी आरोप लगाया की वह पीड़ित बच्ची याची गणों की छोटी लड़की को स्कूल छोड़ने के लिए जाती है और उसके बाद उसको घर वापस लाने के लिए इंतजार करती है। इसी बीच में वह हमसे भी मिलती है और बात करती है। यदि वह भूखी होती है, तो शिकायतकर्ता अक्सर उसके लिए वडापाव खरीदता है। इसी बीच बच्ची ने उसे बताया कि वह दिल्ली से है और याची गणों के घर में बेड की सफाई, बर्तनों की सफाई और उनकी छोटी बेटी की देखभाल करना जैसे काम करती है। दिनांक 6 सितंबर 2019 को शिकायतकर्ता जब सोसाइटी में काम के लिए गया तो वह पीड़ित बच्ची से मिला और क्योंकि वह भूखी थी, इसलिए उसे वडापाव खिलाया। इसी पीड़ित बच्ची ने उसे बताया कि वह घर की चाबियां घर के अंदर भूल गई थी जिसकी वजह से घर लॉक हो गया। इसी गलती की वजह से याची गणों ने उसे बुरी तरह पीटा। इस वजह से शिकायतकर्ता परेशान हो गया और उसने चेंबूर पुलिस थाने में एक शिकायत दर्ज करवा दी।
याचीगण की तरफ से पेश विद्वान अधिवक्ता ने उनका पक्ष रखते हुए कहा कि याचीगण भोले वाले व्यक्ति हैं और उन्होंने कोई अपराध नहीं किया है। प्रथम सूचना रिपोर्ट सुनी सुनाई बातों पर आधारित है और मुक़दमे को आगे चलाने का कोई मामला ही नहीं बनता। प्रथम शिकायतकर्ता द्वारा अपने एफिडेविट में यह बात भी स्वीकार कर ली गई है कि उसने गलतफ़हमी में आकर शिकायत दर्ज करवाई थी और पीड़ित लड़की के माता-पिता से मिलने के बाद अब वह याचीगणों के खिलाफ कोई भी मुकदमा आगे नहीं चलाना चाहता। विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह भी कहा गया कि पीड़ित लड़की के माता-पिता और याचीगण काफी लंबे समय से एक दूसरे को जानते हैं। इसी वजह से उन्होंने अपनी लड़की के अच्छे भविष्य को ध्यान में रखकर उसे अपनी मर्जी से याचीगणों के पास रहने के लिए भेजा था। जो कि उनके द्वारा दिए गए शपथ पत्र में देखा जा सकता है।
प्रथम शिकायतकर्ता मिस्टर कृष्णा मिश्रा द्वारा न्यायालय में शपथ-पत्र फाइल करके बताया गया कि उक्त मामले में बिना किसी पैसे के लेन-देन किए ही आपसी समझौता कर लिया गया है। शिकायतकर्ता ने अपने शपथ-पत्र द्वारा माननीय न्यायालय को यह बताया कि पीड़ित लड़की के माता-पिता से मिलने के बाद उसे यह एहसास हुआ कि उसने गलतफहमी में आकर के याचीगणों के खिलाफ एफ.आई.आर दर्ज करवा दी थी और अब वह मामले को आगे नहीं चलाना चाहता।
एक शपथ-पत्र मिस्टर सम फुल दास और श्रीमती सुनीता देवी ने भी माननीय न्यायालय के समक्ष प्रेषित किया और बताया कि हम दोनों पति-पत्नी हैं और हमने ही अपनी लड़की के अच्छे भविष्य के लिए उसे अपनी मर्जी से याचीगणों के साथ मुंबई रहने के लिए भेजा था।
उन्होंने यह भी बताया कि वे अपनी लड़की से लगातार संपर्क में रहते थे और हमारी लड़की याचीगणों के साथ बहुत खुश थी। उसने कभी उनके खिलाफ कोई शिकायत नहीं की। उन्होंने यह भी बताया कि याचीगणों ने उनकी लड़की का चेंबूर स्थित स्कूल में दाखिला करवाने का भी प्रयास किया।
माननीय उच्च न्यायालय द्वारा कहा गया कि
हमने एफआईआर, चार्जशीट और उससे जुड़ी बातों का ध्यानपूर्वक अध्ययन किया है। यह बात ध्यान रखने योग्य है कि पीड़ित लड़की का ब्यान क्रमश: 6 सितंबर 2018 और 12 सितंबर 2018 को लिया गया। उक्त ब्यान सवाल जवाब के प्रारूप में दर्ज किया गया। अपने ब्यानो में पीड़ित लड़की ने कहा था कि वह याचीगणों के घर की साफ-सफाई करती है, बर्तन धोती है और उनकी छोटी लड़की की देखभाल करती है।
उसने यह भी बताया कि उससे गलती हो जाने पर याचीगण ऋषि प्रभा और रंजीत कुमार प्रसाद उसे कभी-कभार पीटते भी है।
उसने अपने बयान में यह भी बताया कि उसने यह बात अंकल और आंटी को भी बताई थी जो कि याचीगणों के घर से कबाडा ले जाते थे। उसने यह भी बताया कि वह अपने माता-पिता के पास जाना चाहती है और वह अब यहां नही रहना चाहती।
दिनांक 12 सितंबर 2018 को पीड़ित लड़की द्वारा दूसरी स्टेटमेंट में पुलिस को बताया कि याचीगण उसे अपने घर का काम करने के लिए मुंबई लाए थे। उसने यह भी बताया कि याचीगण उसे खाने के लिए केवल दो रोटी देते हैं जो कि उसकी भूख मिटाने के लिए काफी नहीं होती और यदि वह और रोटी मांगती तो याचीगण उससे कहते कि कम खाया कर वरना मोटी हो जाएगी।
माननीय न्यायालय ने कहा कि यह बात सच है कि उक्त एफ.आई.आर और चार्जशीट को समाप्त करवाने के लिए पीड़ित लड़की के माता-पिता और वास्तविक शिकायतकर्ता ने अपने शपथ-पत्र दाखिल किए हैं। जिसमें उनके द्वारा यह शपथ ली गई है कि उक्त एफ.आई.आर और चार्जशीट को माननीय न्यायालय द्वारा रद्द किए जाने पर उन्हें कोई आपत्ति नहीं होगी। लेकिन फिर भी पीड़िता के बयानों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। प्रासंगिक समय में उसकी उम्र 10 वर्ष थी। इसके अलावा अभियोजन पक्ष के मामले में 10 से अधिक गवाहों के बयान हैं। जिनमे से कुछ लोग ऐसे भी हैं जो कि उसी सोसाइटी में रहते हैं।
संबंधित विवेचना अधिकारी ने सीसीटीवी फुटेज, आपराधिक सामग्री और सीसीटीवी आपरेटर के ब्यान भी दर्ज किए है।
इस आधार पर उच्च न्यायालय ने आगे कहा कि केवल इसलिए मामले को समाप्त किया जाना उचित नहीं है कि याचीगणों के साथ-साथ, शिकायत कर्ताओं के द्वारा भी शपथ पत्र देकर मामले को समाप्त करने हेतु निवेदन किया गया है। पीड़िता के बयान, गवाहों के बयान और दूसरी आपराधिक सामग्री उक्त केस में ट्रायल को आगे बढ़ाने के लिए पर्याप्त है।
Filing common charge sheet in multiple crimes is impermissible: Karnataka High Court
[ 3 ] Contentions of the Public Prosecutor
लोक अभियोजक द्वारा भी आपसी समझौते के आधार पर उक्त मुकदमे को समाप्त किए जाने की याचीगणों की प्रार्थना का पुरजोर तरीके से विरोध किया। उन्होंने अपनी बहस में आगे कहा कि प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि पीड़िता के माता-पिता की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण उन्होंने अपनी लड़की की कस्टडी याचीगणों को सौंप दी।
उक्त मामले में दाखिल की गई चार्जशीट धारा 75/79 और 23 जुवेनाइल जस्टिस एक्ट और धारा 370/34 भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत दण्ड का प्रावधान करती है।
Sub Section 4 of Section 1 of the J.J
उक्त अधिनियम के उद्देश्यों और कारणों के कथन से यह निष्कर्ष निकलता है कि यह विशेष विधान बच्चों के सर्वोत्तम हित को ध्यान में रखते हुए बाल हितैषी दृष्टिकोण अपनाकर उचित देखभाल, संरक्षण, विकास, उपचार, सामाजिक पुन: एकीकरण सुनिश्चित करने के लिए लागू किया गया है। इस अधिनियम के प्रावधान जरूरतमंद बच्चे और कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चों से संबंधित सभी मामलों पर लागू होंगे।
उपरोक्त मुकदमे के तथ्यो से पता चलता है कि विवेचना अधिकारी ने जुवेनाइल जस्टिस एक्ट की धारा 23/75 और 79 के अंतर्गत याचीगण के खिलाफ चार्ज शीट दाखिल की है।
आइए जानते हैं क्या कहता है सेक्शन 75 और 79
[ 5 ] 75. Punishment for cruelty to a child.- Whoever, having the actual charge of, or control over, a child, assaults, abandons, abuses, exposes or wilfully neglects the child or causes or procures the child to be assaulted, abandoned, abused, exposed or neglected in a manner likely to cause such child unnecessary mental or physical suffering, shall be punishable with imprisonment from a term which may extend to three years or with fine of one lakh rupees or with both:
[ ] Proviso (1) Provided that in case it is found that such abandonment of the child by the biological parents is due to circumstances beyond their control, it shall be presumed that such abandonment is not wilful and the penal provisions of this section shall not apply in such cases:
Law of Crimes – Culpable Homicide & Murder
[ ] Proviso (2) Provided further that if such offence is committed by any person employed by or managing an organisation, which is entrusted with the care and protection of the child, he shall be punished with rigorous imprisonment which may extend up to five years, and fine which may extend up to five lakhs rupees. Provided also that on account of the aforesaid cruelty, if the child is physically incapacitated or develops a mental illness or is rendered mentally unfit to perform a regular task or has a risk to life or limb, such person shall be punishable with rigorous imprisonment, not less than three years but which may be extended up to ten years and shall also be liable to fine of five lakhs rupees.
79. Exploitation of a child employee. Notwithstanding anything contained in any law for the time being in force, whoever ostensibly engages a child and keeps him in bondage for the purpose of employment or withholds his earnings or uses such earning for his own purposes shall be punishable with rigorous imprisonment for a term which may extend to five years and shall also be liable to fine of one lakh rupees.
विवेचना अधिकारी द्वारा याचीगण पर भारतीय दंड संहिता की धारा 370 के अंतर्गत भी चार्जशीट फाइल की गई है। आइए पढ़ते हैं क्या कहती है यह धारा:-
The Respondent-State has also invoked Section 370 of IPC, which reads thus:
370. Trafficking of person.-
(1) Whoever, for the purpose of exploitation, (a) recruits, (b) transports, (c) harbours, (d) transfer or (e) receives, a person or persons, by-
First- using threats or
Secondly- using force, or any other form of coercion, or
इसी याचिका के संदर्भ में माननीय न्यायालय द्वारा The United Nations Convention on the Rights of the Child.’ में दिए गए प्रावधानों का भी माननीय उच्च न्यायालय ने विश्लेषण किया जिन्हें आप इसी आर्टिकल में नीचे दी गई जजमेंट में जाकर के पढ़ सकते हैं।
विकिपीडिया पर जो भी लिखा होता सच हो जाता था फिर उसकी मौत की कहानी भी सच हो गई।
[ 6 ] Judgment of the Hon’ble High Court:-
उपरोक्त मामले के तथ्यों के विश्लेषण से हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि केवल इस आधार पर FIR और चार्जशीट को खारिज नहीं किया जा सकता कि शिकायतकर्ता और अभियुक्तगणों के बीच में आपसी समझौता हो गया है। और यह भी महत्वपूर्ण बात है कि जब इस तरह के सौहार्दपूर्ण समझौते का प्रतिवादी-राज्य द्वारा जोरदार विरोध किया गया हो।
यहां तक की दोनों पक्षों के द्वारा समझौते के आधार पर शपथ पत्र माननीय न्यायालय में दाखिल किया गया है लेकिन फिर भी पीड़िता के बयान और अन्य बहुत से गवाहों के ब्यान, अपराधिक सामग्री जैसे सीसीटीवी फुटेज उक्त मुक़दमे में ट्रायल चलाने के लिए पर्याप्त है।
प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि पीड़िता के माता-पिता के 5 बच्चे हैं और उनकी आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। इसलिए उन्होंने पीड़िता को ऋषि प्रभा और रंजीत कुमार प्रसाद के पास भेज दिया जो कि पीड़िता को दिल्ली से मुंबई लेकर आए।
माननीय न्यायालय द्वारा Gian Singh Versus State of Punjab and Another का भी हवाला दिया जिसमें माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा यह अवधारित किया गया है कि उन मामलों को समझौते के आधार पर समाप्त नहीं किया जा सकता जोकि विशेष कानून का उल्लंघन करते हो जैसे कि प्रीवेंशन आफ करप्शन एक्ट और ऐसे अपराध जिन्हें पब्लिक सर्वेंट द्वारा अपनी ड्यूटी के दौरान किया गया हो आदि। वर्तमान मुकदमे मे भी याचीगण ने जुवेनाइल जस्टिस एक्ट 2015 के प्रावधानों का उल्लंघन किया है जो कि एक विशेष कानून है।
माननीय उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में आगे कहा कि नियमित अपराधिक मामले ऐसे होते हैं, जो कि मुख्य रूप से दीवानी प्रकृति के होते हैं और व्यक्तिगत होते हैं। लेकिन वर्तमान मामले के विश्लेषण से एक महत्वपूर्ण बात यह निकलकर आती है कि इस तरह के मामलों से पूरे समाज पर प्रभाव पड़ता है। याचीगण के द्वारा किए गए अपराध को व्यक्तिगत प्रकृति का नहीं कहा जा सकता।
माननीय उच्च न्यायालय द्वारा State of M.P. VS. Laxmi Narayan का भी हवाला दिया जिसमें माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा अवधारित किया गया है कि इस तरह की याचिका का निस्तारण करते हुए जिनमें आपसी समझौता हो चुका हो, उच्च न्यायालय को उन मामलो में धारा 482 दंड प्रक्रिया संहिता की शक्तियों का इस्तेमाल करते समय मामले की प्रकृति और गंभीरता का जरूर ध्यान रखना चाहिए। माननीय सुप्रीम कोर्ट ने यह भी अवधारित किया कि जघन्य और गंभीर प्रकृति के अपराधो को जैसे कि हत्या, बलात्कार, डकैती जैसे मामलो को पीड़ित या पीड़ित परिवार के सदस्यों द्वारा आपसी समझौते के आधार पर समाप्त नहीं किया जा सकता। ऐसे अपराध वास्तविक रुप से हैं बताते हैं कि वे व्यक्तिगत प्रकृति के नहीं है बल्कि उनसे समाज पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है। सामाजिक हित में इस प्रकार के मामलों को आगे बढ़ाया जाना आवश्यक है ताकि समाज के ऐसे तत्वो की जानकारी कर उन्हें दंडित किया जा सके।
माननीय उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में आगे कहा कि उपरोक्त दिशा-निर्देशों को ध्यान में रखते हुए हम इस निर्णय पर पहुंचे हैं कि इस तरह के मामलों को आपसी समझौते के आधार पर खत्म नहीं किया जा सकता जिनसे समाज पर गहरा प्रभाव पड़ता है। इसलिए हम इस मामले में प्रेषित की गई एफ.आई.आर और चार्जशीट को आपसी समझौते के आधार पर समाप्त करना उचित नहीं समझते इसलिए यह याचिका खारिज की जाती है। माननीय उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि प्रथम दृष्टया उक्त मामले में दिया गया न्याय निर्णय केवल वर्तमान याचिका तक ही सीमित है। परीक्षण के दौरान निचली अदालत इस निर्णय से प्रभावित नहीं होगी।
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